Book Title: Bhagvana Rushabhdev Diwakar Chitrakatha 002
Author(s): Subhadramuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 34
________________ भगवान ऋषभदेव अगले दिन भरत ने स्वर्णकार को अपनी राज सभा में स्वर्णकार कटोरे को लेकर पूरी अयोध्या नगटी का | बुलाया। और तेल से लबालब भरा हुआ एक कटोरा चक्कर लगाकर वापस राजदरबार में आता है। भरत देकर कहा उससे पूछते हैं। 6 इस कटोरे को हथेली पर रखकर पूरे महाराज! मेरा तो बताओ तुमने अयोध्या नगरी का चक्कर लगाओ और पूरा ध्यान इस अयोध्या के बाजारों वापस आकर मुझे बताओ तुमने नगर में क्या तेल के कटोरे पर में क्या देखा? देखा? खबरदार जो कटोरे में से एक बूंद ।। | लगा हुआ था तेल भी गिरा तो तुम्हें मृत्यु दण्ड मिलेगा! | इसलिये मैं कुछ भी नहीं देख पाया। 2007 भरत ने यह सुना तो वे हंसकर बोले इस तरह समाज में परिग्रह और त्याग का मर्म समझाते हुए ऋषभदेव को हमारों वर्ष गुजर गये। एक दिन उन्हें महसूस हुआ कि अब उनका अन्तिम समय निकट आ गया है। यह जानकर वे अष्टापद पर्वत पर जाकर समाधि-ध्यान में स्थिर हो गये। तुम कुछ समझे? इस ऐश्वर्य से भरी दुनिया में, मैं भी इसी प्रकार जी रहा हूँ। मेरा पूरा ध्यान अपनी आत्मा पर केन्द्रित है संसार के बाजार से मुझे कुछ भी लेना-देना नहीं है। सोचो फिर भी क्या मैं महा परिग्रही हूँ? महाराज! मुझे क्षमा करें मैं भगवान के कथन की गहराई को नहीं समझ सका। IGODDA For Private Personal use only! 0562-26624 w ain library

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