Book Title: Bhagvana Rushabhdev Diwakar Chitrakatha 002
Author(s): Subhadramuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 32
________________ भगवान ऋषभदेव बाहुबलि के कदम उठाते ही अभिमान रूपी हाथी लुप्त हो गया। केवल ज्ञान प्राप्त होने पर बाहुबलि के अन्दर का कण-कणं जगमगा उठा। आकाश से उतरते देवताओं के झुण्ड ने पुष्प वर्षा की, दिव्य ध्वनियाँ गूंजी, केवली बाहुबलि की जय 100 मुनि तो सदा ही महान् होता है। छोटे-बड़े सब मुनियों को मेरा नमस्कार ! मैं जाता हूँ प्रभु आदीश्वर के चरणों में! PANNN ANMa एक बार प्रभु आदीश्वर के दर्शन करने चक्रवर्ती भरत आये। वहाँ अपने अठानवें बंधुओं और बाहुबलि को मुनि रूप में उपस्थित देखकर भरत के मन में अपने कृत्य के प्रति पश्चात्ताप हुआ। AKCEO भरत | तुम त्यागी तपस्वियों की सेवा करो। सदाचारियों का पोषण करो, इसी से तुम्हारे मन को शान्ति प्राप्त होगी। प्रभो! अपने भाइयों के साथ मैंने घोर अन्याय किया है। मैंने इक्ष्वाकु वंश की निर्मल कीर्ति पर कलंक लगा दिया है। प्रभो ! मेरा यह जघन्य आचरण कैसे क्षम्य होगा? पश्चात्ताप से जलते मेरे हृदय को कैसे शान्ति मिलेगी? SAMITRAM LuunsitiatitutioLI Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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