Book Title: Bhagvana Rushabhdev Diwakar Chitrakatha 002
Author(s): Subhadramuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 30
________________ युद्ध में षट्खण्ड चक्रवर्ती को जीतने वाले बाहुबलि सूक्ष्म अहंकार से हार मन के गये। वे सोचने लगे मैं भगवान ऋषभदेव के पास जाऊँगा तो वहाँ मुझसे पूर्व दीक्षित छोटे भाई भी होंगे? उन्हें वन्दना करनी होगी ? अपने से छोटों के सामने कैसे सिर नवाऊँगा? भगवान ऋषभदेव Jain Education International एक दिन साध्वी ब्राह्मी-सुन्दरी भगवान ऋषभदेव के पास आईं। उन्होंने ऋषभदेव से पूछा प्रभो ! महामुनि बाहुबलि कहाँ तप कर रहे हैं? उन्हें केवल ज्ञान हुआ या नहीं? कभी-कभी तिनके की ओट हमें सूर्य छुपा रहता है? अद्भुत घोर तपस्वी मुनि बाहुबलि के मन में अहंकार का एक तिनका आ गया है, यही अहं केवल ज्ञान के दिव्य प्रकाश को रोक रहा है। तुम जाओ उसे जगाओ ! aree K-by! अभिमान का यह छोटा-सा प्रश्न बाहुबलि के मन में कांटा बनकर चुभ गया। वे एक वर्ष तक अचल हिमालय की तरह ध्यान लीन खड़े रहे। शरीर पर लताएँ चढ़ गईं। पाँवों पर मिट्टी की परतें जम गई। नाग आदि जीव-जन्तु १.२०१० चन्दन तर समझकर उनकी देह से लिपट गये। For Private 28ersonal Use Only 3 www.jainelibrary.org

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