Book Title: Bhagvana Rushabhdev Diwakar Chitrakatha 002
Author(s): Subhadramuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 31
________________ भगवान ऋषभदेव जंगल के बीच बाहुबलि ध्यानयोग में पर्वत की भाँति स्थिर खड़े थे। पत्तियों, लताओं और नागों से लिपटा उनका देह चन्दन तल सा लग रहा था। इसलिए ब्रानी-सुन्दरी बाहबलि को पहचान नहीं पाती है। तब वे अपनी दिव्य संगीत वाणी में बाहबलि को पुकारती हैं भाई ! जागो ! समझो ! हाथी से नीचे उतरो। हाथी पर चढ़े हुए को केवल ज्ञान नहीं हो सकता। मान रूपी हाथी ज्ञान रूपी सूर्य को ढके हुए है ! समझो मेरे भाई !" यह संगीत सा मधुर स्वर तो मेरी बहनों का लगता है? कैसे कहती हैं वे, मैं हाथी पर चढ़ा हूँ! कहाँ है हाथी? सब कुछ त्याग तो चुका हूँ""14 बाहुबलि अपने आपको टटोलने लगे तो विवेक के दर्पण में मान-रूपी हाथी सूंड उछालता हुआ दिखाई दिया। DOO "ओह! मैं तो अभिमान रूपी हाथी पर बैठा हूँ। साम्राज्य छोड़ा, शरीर की ममता छोड़ दी ! पर अहंकार नहीं छोड़ सका, छोटे-बड़ों का प्रश्न क्यों | अटका है मेरे मन में? इसी से तो अटक गया केवल ज्ञान! Jain Education For Private 29ersonal Use Only www.jainelibrary.org

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