Book Title: Bhagvana Rushabhdev Diwakar Chitrakatha 002
Author(s): Subhadramuni, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 12
________________ भगवान ऋषभदेव भगवान् ऋषभदेव को साधु बनते देख कच्छ, महाकच्छ राजा आदि चार हजार व्यक्ति भी उनके साथ साधु बन । गये और प्रभु के पीछे-पीछे जंगल की ओर चल पडे।। एक बार भगवान ऋषभदेव अपने शिष्यों के साथ भिक्षा के लिये नगर पधारे। उनके स्वागत के लिए लोग अनेक प्रकार के फल और सामान लेकर आये। परन्तु ऋषभदेव ने सोचा मैं शुद्ध एवं सादा आहार करूगा यह सब मैं ग्रहण नहीं कर सकता। स्वामी, हम आपके के लिए। स्वर्ण आभूषण लाये हैं। DESH प्रभु,मैं आपके लिये -मीठे फल लाया हूँ। शुद्ध आहार न मिलने पर ऋषभदेव भूखे प्यासे ही वहाँ से शिष्यों को जब ज्यादा भूख प्यास सताने लगी तो उन्होंने चल दिये और जंगल में जाकर तप करने लगे। भूख-प्यास जंगल में कन्द-मूल फल खाना प्रारम्भ कर दिया और से त्रस्त होकर उनके शिष्य भगवान के पास आये। तापस बन गये। प्रभु।हम कैसा आहार ग्रहण करें? हमारी क्षुधा अग्नि को शान्त कीजिये।। sachs परन्तु ऋषभदेव मौन तप में लीना होने के कारण कुछ न बोले। Jain Education International For Private ersonal Use Only www.jainelibrary.org

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