Book Title: Balidan Patra No 003 1915
Author(s): Parmanand Bharat Bhikshu
Publisher: Dharshi Gulabchand Sanghani

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Page 4
________________ ( २ ) नयित्नुर्द द द इति । दाम्यत दत्त दय- मार्के के समान चिन्ह देकर छोटे २ बच्चों ध्वम् इति । तदेतत्त्रयं-शिक्षेतदमं दानं के ब्रह्मचर्य व्रत को गिराना, कन्यावत दयामिति । यजुर्वेद "शतपथ ब्राह्मण" को नष्ट करना, पातिव्रत धर्म को रसाकाण्ड १४ । अध्याय ८। ब्राह्मण २॥ तल पहुंचाना, विधवाओं को कलंकित भावार्थः-जगत्पिता ब्रह्मांजी ने सब कर धर्मवत से दृपित कर उनके गर्भ जीवों को अपने २ कर्मों के अनुसार को गिराना, बाल्यावस्था में विवाह तीन प्रकार की प्रजाओं की सृष्टि उत्पन्न कराना, साठ वर्ष के दृद्ध पुरुष के साथ की थी, सात्विकी,राजसी और तामसी. बाल कन्या का विवाह कराना, जूंठी इन तीनों ही प्रजाओं ने ब्रह्मचर्य को पत्तलों के चाटने वाले हे विषयधारण कर अपने उत्पन्न करनेवाले लोलुप देवताओ ! इन्द्रियों का निरोध पितामह के पास जा निवेदन किया करके कन्या-पाठशाला तथा पतिव्रता कि हमारे कल्याण का उपदेश कीजिये। स्त्रियों के नित्य नियम के वास्ते स्त्री पितामह ब्रह्माजी ने उनको ३ दकारों समाजरूपी मंदिर को स्थापित करो, का उपदेश दिया. यथाः-देवताओं को तबही तुम्हारा कल्याण होगा। दमन, मनुष्यों को दान और दैत्यों जीववातक (राक्षस ) को दया करना। पुरुषों का कर्त्तव्य । वर्तमान काल के देवताओं पितामह ब्रह्माजी ने जीवहिंसकों का कर्तव्य । को अलुरों की पदवी दी है। कृष्ण वर्तमान काल के देवताओं का कान भगवान् ने ऐसे कुकर्मियों को मूढ़ों की में फूंकना वा कंठी बांधना, माथे पर पदवी देकर आसुरी योनि की प्राप्ति तिलक देना वा छल कपट की कथा कही है “आसुरी योनिमापन्ना मूढा जतथा दो चार पंक्ति वेदान्त की सुनाना न्मनि जन्मनि" वेदव्यासजी ने मच्छी वा हाथ में सूत्र बांधना वा चरण धो- मांस तथा शराब के सेवन करने वालों कर पिलाना, एवं बिना अपराध कान | को धूर्तों की पदवी दी है । सो यह है फाड़कर चेले बनाना, शंख चक्र गदा- सुरां मत्स्यान्मधुमांसमासवं कृसरौदिकों की छाप को अग्नि में लालकर दनम् । धृतः प्रवर्तितं ह्येतन्नैतद्वेदेषु भुजाओं को बिना अपराध दागना, कल्पितम् ॥ महाभारत । शांतिपर्व । छूटा खिलाना, स्टेशनों के पासलों के अध्याय २६५ ॥ गुरु गोविन्दसिंहजी

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