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प्यालियां चाह की हाथ से उठाते हैं हि- ( बहादुरी) दीन्हीं"। न्दु होकर मुसलमानों व कृश्चिनों के हो! टट्टी की ओट में बैठकर मृगा. टलों में खाते हैं और फिर भी कहते हैं | दिक खरगोश वा तीतरों का शिकार कि हम सनातन धर्मावलम्बी हैं इससे परे वा देवता के बहाने भैंसे बकरे काटते शोक और आश्चर्य क्या होसक्ता है। हैं और उन मुरदों को पेट में दफन और भी देखियेः
कर कहते हैं कि हम क्षत्री हैं, क्षत्री राजपूताना (मालवा) आदि देशों नाम तो छाया का था अर्थात् प्रजा में जो भारत बीरों की सन्तान क्षत्री | को नाना प्रकार के क्लेशों से बचाने रूपी राजा हैं उनका कर्त्तव्य देखिये के लिये था । देखिये-जिस समय कि दशहरे के दिन यमराज के वाहन इन्द्र ने अभिमान कर अति वर्षा का रूप भैंसे को खूब शराब पिला, प्रारंभ किया उसी समय कृष्ण भग. सिंदूर लगा कर लाखों पुरुषों के बीच वान् ने गोवर्धन पर्वत को सब से में उसके पेट में बरछी मारकर उसको | छोटी चिटली अंगुली पर उठाकर चमका उसको मैदान में भगाकर उसके वृजमात्र के पशु पक्षी की रक्षा कर पीछे घुड़सवारों को दौड़ाकर चौतरफ | क्षत्री-वंश का परिचय दिया था । से घेर तलवार वा भालों से उसका ऐसे वीर-ब्रह्मचारी क्षत्री-वंश को शिकार करते हैं. सज्जनगण देखिये ! ये | कलंकित करने वाले धृत लोग कहते वोही क्षत्री वंश हैं जिनको जीव-यात्र हैं कि “वह बहुत स्त्रियों को रखने की रक्षा और दुष्टों के नाश करने के वाला व्यभिचारी था " उन धृता वास्ते ईश्वर की आज्ञासे ऋषि मुनियों ने का यह कहना विलकुल निष्फल है भारत में राजारूप करके स्थापित किया क्योंकि उनका जन्म ही धर्म की रक्षा था, परन्तु यहां बड़ा आश्चर्य है कि यही के निमित्त और दुष्टों के नाश के वास्ते राजलोग मुर्गी तीतरादिक पक्षियों को | था सो गीता में भली-भांति दर्शाया है। अपने चौके में गरम पानी में उबला क्षत्री तो "एका नारी सदा ब्रह्मचारी" कर प्राण लेते हैं और अपनी जठराग्नि को शांत करते हैं।
याददास्त. "चार यार जो चदै शिकार, मक्खी श्री नैपालमुकुटमणि आज्ञा देते हैंघेरी बीच बजार, मारी नहीं पर लं- डाक्टर रत्नदासजी ! स्वामीजी से पूछो गड़ी कीन्हीं, बड़ी खुदा ने फत्या | और क्या फर्माते हैं.