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के सहित सब मांस को पकाकर सब कच्छादि अवतार मानकर उनको मिलकर के मुखरूपी श्मशान में दाह जल-तुरैई कहकर भक्षण करते हैं। करके पश्चात् शेष मांस जो बचजाता
और भी देखियेःहै उस मांस को उसी मकान के भीतर | अवतारत्रयं विष्णोर्मैथिली कवली गाड़कर फिर अपने २ स्थान में चले कृतम् । इति संचित्य भगवान्नारसिंह जाते हैं।
। वपुर्दधौ ॥ और भी देखिये:- __ भावार्थः विष्णु भगवान् संसार सनातन धर्मियों की दुर्गापूजा। के कल्याण के वास्ते ३ अवतार धारण
इसी मिथिला देश के निवासियों करके कच्छ, मच्छ, वराह ( सूकर) को ईंट पत्थर के देवताओं के सामने रूपसे प्रकट हुए, परन्तु उन मैथिली चैतन्य देवतारूपी बकरे के गले का ब्राह्मणों ने संसार में वीरता दिखलाने पुजारी-रूपी कलियुगीसिद्ध की छाती के वास्ते अपने इष्टदेव अवतार-रूप पर काट २ कर उस की धड़ की नस कच्छ, मच्छ, वराह को मारकर उन्हें को भक्तजन सिद्ध के मुख में लगाकर पेट में भस्म करदिया, तो विष्णु भगखून ( रक्त )को पिलाते जाते हैं ऐसे वान् ने फिर दुष्टों के नाश और भक्तों अनेकों बकरों के खून को एकही की रक्षा करने के लिये नरसिंह शरीर मनुष्य पी जाता है जिस देश में धारण किया, परन्तु मैथिली ब्राह्मणों ऐसे २ निर्दयी खून पीनेवाले राक्षस
के फिर भी अविद्यारूपी नेत्र नहीं रूपी सिद्ध रहते हैं उस देश का
| खुलते । इसीप्रकार कान्यकुब्ज ब्राह्मण क्यों न कल्याण होवे ।
भी भगवान् को व्यापक मानकर और इसी प्रकार जब श्रीमहाराज सा.
उसी व्यापक का अवतार दुष्टों के नाश क्षात् अष्टमी की पूजन में सैकड़ों बकरे के वास्ते मानते हैं और फिर भी उसी स्वयं कटवाते हैं तब निरपराध दीन भगवत् सृष्टि का नाश करते हैं । बकरों की पुकार कौन सुने. इसी देश ___ कान्यकुब्जा द्विजाः सर्वे सूर्या एव में सूअरों को खानेवाले उनको ऐसी
न संशयः । मीन मेषादिराशीनां भोदुर्गति से मारते हैं कि जिसको देखकर कारः कथमन्यथा ॥ रोम खड़े होजाते हैं और भी उपरोक्त भावार्थः-कान और कुब्ज ये दोनों मैथिल देश सरयूपार के निवासियों तेजस्वी ब्राह्मण अयोध्या में मर्यादाका कर्चव्य देखिये-जो कि मच्छ पुरुषोत्तम रामचन्द्र के यज्ञ में प्राप्त हो