Book Title: Balidan Patra No 003 1915
Author(s): Parmanand Bharat Bhikshu
Publisher: Dharshi Gulabchand Sanghani

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Page 21
________________ (१६) डाक्टर रत्नदासजी-स्वामीजी ! जन्म भी लेवे तो अल्पायु होता है आपकी क्या आज्ञा है अर्थात् सेवा के थोड़ा जीवे तो भी दुर्बल इंद्रियोंवाला पास्ते क्या चाहिये ?। | ( कमजोर ) ही रहता है इस कारण स्वामीजी-१ दुर्गति के साथ जीवों पूर्ण ब्रह्मचर्य के धारण किये विना का बध बंद कराना, २-मादक वस्तुओं विवाह कदापि नहीं करना चाहिये के प्रचार को बंद कराना, ३-ब्रह्म श्रुति भगवती तथा धन्वंतरी भगवान् चर्याश्रम का पालन कराना, ४-बाल की आज्ञा को उल्लंघन करके जो दुष्ट विवाह वृद्धविवाह तथा बहुविवाह को पापात्मा अाना स्वार्थ वा विषयाशक्ति बंद कराना, २५ वर्ष का पुरुष और १६ को पूर्ण करना चाहते हैं वह सब देशों वर्ष की कन्या के विवाह का प्रचार का सत्यानाश करने वाले हैं। कराना, सो यह है:-- सत्यहीना वृथा पूजा सत्पहीनो त्रिंशद्वर्षः षोडश वर्षी भार्या वि वृथा जपः । सत्यहीनं तपो व्यर्थ पूषरे :न्दते नग्निकामः । इति श्रुतिः। जिस वपनं यथा ॥ सत्यरूपं परं ब्रह्म कन्या का सोलह वर्ष पर्यंत ब्रह्मचर्य | सत्यं हि परमं तपः। सत्य-मूलाः क्षीण नहीं हुआ उस कन्या के तीस क्रियाः सवाः सत्यात् परतरो नहि ।। सत्यव्रताःसत्यनिष्ठा सत्यधर्मपरायणाः। वर्ष के पुरुष के साथ विवाह करने की कुजसाधनसत्या ये नहि तान् बाधते श्रुति की आज्ञा है ब्रह्मचर्येण कन्या कलिः ॥ युवानं विंदते पतिम् । अथर्व० काण्ड ___ धर्म की आज्ञा प्रवर्तन कराना यही ११॥ कन्या ब्रह्मचर्य से परिपाक युवा अतिथि सत्कार है और किसी वस्तु अवस्था में युवापति को प्राप्त हो ।। की ज़रूरत नहीं है. यथा-रघुकुल रीति ऊनषोडशवर्षायाम-प्राप्त पंचवि. समोरया . सदाचल आई। प्राण जाय पर वचन शतिम् । यद्याधत्तेपुमानूगर्भ कुक्षिस्थः | मेरे अपराध को आप लोग क्षमा स विपद्यते॥६७ जातो वा न चिरंजीवे करेंगे. सनातनधर्म महान् समुद्र रूप है, ज्जीवेद्वादुर्बलेंद्रियः ॥ तस्मादत्यंत-बा- इस में से विंदुमात्र आप लोगों की लायां गर्भाधानं न कारयेत् ॥ ६८॥ सेवा में भेनता हूं जो मनुष्यमात्र को सोलह वर्ष की अवस्था से छोटी स्त्री उपयोगी है. और पच्चीस वर्ष की अवस्था से छोटा प्राणीमात्र का शुभचिंतकपुरुष गर्भाधान करे तो वह गर्भ कुत्ति स्वामी परमानन्द भारत-भिक्षक. ही में विकार को प्राप्त होता है और सन्त-सरोवर आत्मतीर्थ, खण्डित होजाता है यदि पूरा होकर । आबू पर्वत (राजपूताना). | न जाई ॥

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