Book Title: Balidan Patra No 003 1915
Author(s): Parmanand Bharat Bhikshu
Publisher: Dharshi Gulabchand Sanghani

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Page 19
________________ (१७) कर अनेक विद्वानों के बीच में ब्रह्मतेज आश्रम और कान्यकुब्न-महामंडल का परिचय दिया अर्थात् शास्त्रार्थ में स्थापित करदें तो पूर्व की नाई सूर्य सर्वोपरि रहे और ब्रह्मचर्य का जो | की पदवी फिर इनको प्राप्त होगी. . प्रभाव अर्थात् वरि-धर्म का सर्वोपरि । चम्बा राजधानी में श्री मर्यादापरिचय दिया अर्थात् सब योद्धाओं पुरुषोत्तम राम की विजयादशमी दशहरे को मर्दन कर अपना बल दिखाया के दिन एक भैंसे को सिंदूरादि से और पश्चात् रामचन्द्रजी ने इनको सूर्य शृंगार करके नदी के किनारे सब की पदवी दी “सर्वेसूर्या एव न संशयः" राजा प्रजा एकत्र होकर यमराज के ऐसा वाक्य कहकर प्रदान की, पश्चात् वाहनरूपी भैंसे को बलात्कार से रामचन्द्रजी ने इनको बहुत द्रव्य देना कूट २ कर उसे पकड़ कर गंभीर चाहा, परन्तु इन्होंने किचित् मात्र भा वेग वाली बहती हुई नदी के प्रवाह ग्रहण नहीं किया इनकी यह प्रतिज्ञा | में चढ़ाते हैं अर्थात् कई हज़ारों आदमी थी कि हम महर्षियों की सन्तान हैं हम लाठी और पत्थरों से मार २ कर अपने उद्योग से द्रव्य उपार्जन कर उसको नदी के पार जाने के लिये पूर्व अतिथि सत्कार वा अनेक प्रकार के प्रयत्न करते हैं देवयोग से यदि वह उपकार में लगाकर पीछे अपने शरीर नदी के पार निकल गया तो मानो का पालन पोषण करते हैं हमारी यह हमारी आपत्ति दुःख सब दूर होगया प्रतिज्ञा है कि हम किसी का प्रतिग्रहरूपी ऐसा उनको विश्वास है यदि बहतार मलको न उठाकर अपने ब्रह्मतेजकी रक्षा डूब जाय वा फिर पीछा गांव में करेंगे। उन्हीं की औलाद वर्तमान काल आजाय तो अपना अभाग मानते हैं में अति अपवित्र मांस, मच्छी आदि इससे परे और अविद्या अज्ञान कहां ईंट पत्थर के देवता के बहाने पेट में से लाना चाहिये ।. . मुर्दो को दफन करने लगे, इसी. वास्ते देवता के क्रोध से इन और भी देखिये:-सिंध देश में के गले में भैयागिरि लटकादी है. सनातनधर्म के पुरुष स्टेशन पर स्टेशन अपनी जाति, गोत्र और मातृभूमिका रोटी गोश्त करके बेचते हैं और हिंदुजो गौरव मान बड़ाई थी उसे भूल गये ओं के होटल में मुसलमानों की रोयदि यह अभी भी उसे याद करके टियां बिलायत के बिस्कुट आदि अपनी मातृ-भूमि कनोज में ब्रह्मचर्य | बेचते हैं और मुसलमानों की झूठी

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