Book Title: Balidan Patra No 003 1915
Author(s): Parmanand Bharat Bhikshu
Publisher: Dharshi Gulabchand Sanghani

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Page 17
________________ (१५) - - - ------- - -- कवीर कलजुग के ब्राह्मण-मांस गणेशपूजामछलियां खायं । पांव पड़े राजी रहे श्री गणेशजी का वाहन मूसा मने करे जलजा। ( अंदरा ) उसको भी लम्बे चौड़े सज्जनगण थोड़ा और भी देखियेः तिलकधारी और पढ़े लिखे हुए पेट में आहुति देते हैं और सनातन- जो सनातनधर्म का पवित्र स्थान धर्म महामंडल के प्रधान शिरोमाण जिसका नाम हरिहर क्षेत्र है, काति श्री श्री १०८ महाराजाधिराज श्री की पूर्णमासी के पर्व पर छोटे २ रमेश्वरप्रसादसिंहजी की जन्मभूमि बकरी के लाखों बच्चे उठा २ कर दरभंगा के पास ग्राम चौहटा( स्टेशन गंगा की बहती धारा में फूलों के कमतौल) ग्राम में बस्ती के सब ब्राह्मण समान चढ़ाये जाते हैं और ग्वाल अष्टमी के दिन गांव २ में शहर २ में लाखों लोग माघ शुक्ला ५ के पश्चात् रवि वार की रात को एक बड़े मकान सूअरों की पिछली टागों को बांध के भीतर सब एकत्र होकर धर्मकर और गौओं के समूह के बीच में उन | राज का पूजन करते हैं सो पूजन सूअरों को गौओं के मत्थे पर ब्राह्मण | यह है कि दो २ चार २ वा दश २ वर्ष लोग फेंकते हैं और उन गौओं को चमका कर उन सूअरों को कई घंटे के बकरे जिनके अण्डकोष प्रथम से तक गौओं के सींगों से पटकवाते और ही निकाल कर धर्मराज के निमित्त रक्खे हुए थे उन बकरों को सौ दोसौ पैरों की लातों से मरवाते हुए प्राण लेते हैं, विचाररूपी नेत्रों से रहित चारसौ पांचसौ धर्मराज के सन्मुख और दया शून्य पुरुष देखकर प्रसन्न लाकर न्याय कराते हैं अर्थात् उन होते हैं और इसी प्रकार जीवित क बकरों को घास काटने की दांतली के साथ उनके गर्दनों को काट २ कर छुए को भगवान् का अवतार मानकर जलती २ अग्नि के ऊपर उलटा रख धर्मराज के सन्मुख शिर स्थापित कर कर उस को भूनते हैं और पेट को भोग पीछे उन सब शिरों को उसी मकान लगाते हैं इसी प्रकार जीती मच्छी को में रात ही रात में दफन करके अपने भी भुट्टे के समान अग्नि में भूनते हैं । स्थान को जाते हैं प्रातःकाल उठते ही निर्दइयों के समान उनकी खाल और भी देखियेः उतारकर उन खालों के रोमों को - तिरहुत-निवासी सनातनियों की चौके की चिता में दाह करके त्वचा

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