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को शूद्रों के समान कार्य में लगाना वीतराग से रहित, अर्थात् मनुष्य से चाहिये । लेकर ब्रह्मापर्यन्त जो लौकिक सुख हैं उनको जो काकविष्ठा के समान -समझकर नहीं त्यागता, (४) शमादि मन सहित इन्द्रियों के दमन करने से जो रहित है, ( ५ ) गुण अर्थात् दैवी संपत्ति गुणों से रहित है ऐसे ऊपर कहे हुए लक्षणों से जो रहित साधु वा ब्राह्मण है और भिक्षामात्र से जीवन करते हैं वे मनुष्य वर्त्तमान में पशु के समान हैं और मरे पीछे पापी पुरुषों के प्राप्त होने योग्य जो नरक हैं उनमें जाकर नरकरूपी दुःख को दाताओं के सहित भोगते हैं । पुनः तीनकाल की संध्या, उपासना, अग्निहोत्र, पूजापाठ आदि नित्य नियम को त्याग कर स्टेशनों पर जाकर तीन संध्यारूपी तीन गाड़ी - डाक, पसींजर, लोकल के यात्रियों को साथ लेकर अनेक स्थानों में भटका २ कर धर्म के नाम से उनसे धन उपार्जन कर के सप्तव्यसनादि दुष्ट कर्मों में लगाने वालों को जो दाता धन देते हैं सो यजमान गुरू दोनों शास्त्र में कहे हुए पापात्माओं को प्राप्त होने योग्य जो स्थान (नरक) हैं उनको प्राप्त होंगे, गुसाईं तुलसीदासजी कहते हैं:"हरहिं शिष्यधन शोक न हरहिं, . ते गुरु घोर नरक में परहिं"
और भी देखिये -
मूर्खा यत्र न पूज्यन्ते धान्यं यत्र सुसंचितम् | दम्पत्योः कलहो नास्ति तत्र श्रीः स्वयमागता ।।
भावार्थ:-जिस देश में, जिस ग्राम में वा जिस घर में सप्त व्यसनी मूखाँ का सत्कार नहीं होता और उनको दानादि नहीं दिया जाता है और जिस देश में, जिस ग्राम में, जिस घर
तीन वर्ष, दा दो वर्ष वा एक वर्ष का भी अन्न संचित रहता है और जिस देश, जिस ग्राम, जिस घर में स्त्री पुरुषों में परस्पर प्रीति ( स्नेह ), मैत्री आदि सद्भाव हैं वहां लक्ष्मी स्वयं
कर के विराजती है और सुखम्पत्ति को बढ़ाती है जिस देश में यह ऊपर कहे हुए प्रसंग नहीं हैं वह देश रसातल को पहुंचता है |
पुनः ।
तितिक्षाज्ञानवैराग्य शमादिगुणवर्जितम् । भिक्षामात्रेण जीवन्ति ते नरा पशुवत् किल ॥
भावार्थ:- (१) तितिक्षा, जो शीतो. ध्ण, भूख, प्यास, सुख दुःख इन्हों के न धारने वाला (२) ज्ञान, जो बेदादि विद्या से रहित, ( ३ ) वैराग्य जो