Book Title: Balidan Patra No 003 1915
Author(s): Parmanand Bharat Bhikshu
Publisher: Dharshi Gulabchand Sanghani

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Page 14
________________ (१२) अपहीन, (४) तपहीन, (५) संध्या- आदि में नाचने वाला, ८-पैसा लेकर ग्निहोत्र रहित, (६) स्वार्थी, (७) पढ़ाने वाला,ह-पैसा लेकर औषधिकरघेश्यासक्त, (८) विषय लोलुप, (8) ने वाला, १०-देवता का पुजारी,११-- प्रमादी, (१०) छली, (११) कपटी, ज्योतिषी,१२-चिट्ठी बांटने वाला हल(१२) द्वेषी, (१३) मिथ्यावादी, कारा, १३-शूद्रों का गुरू, १४-अप्रिय (१४) भांग तमाखू गांजा सुलफा बोलने वाला, १५-खेती करने वाला, अफीम और शराब तथा मांस जूया १६-घृत तैलादिक बेचनेवाला, १७चौपड़ सट्टा आदि दुष्ट व्यसनों के व्याज लेकर जीविका करनेवाला, १८सेवन करने वाला, (१५) निन्दक, व्यापार करनेवाला, १४-माता पिता (१६) कृतघ्न, (१७) कान में फूंकने की. सेवा रहित, २०-अग्नि लगाने चाला, (१८) विश्वासघाती। वाला २१-गर्भ गिराने वाला, २२इत्यादि कुपात्रों को दान देने से विष देनेवाला, २३-झूठी गवाही देने दाता दरिद्री होता है और दरिद्रता वाला, २४-मद्यपान करनेवाला, २५के प्रभाव से पापकर्मों से जीविका मित्र से द्रोह करनेवाला, २६-चुगली करता है उन पापों के प्रभाव से अनेक करनेवाला, २७-हिंसा करनेवाला, दुःखरूपी नरकों को प्राप्त होता है, २८-हिंसा का उपदेश करनेवाला. २६इसी प्रकार कारंवार दरिद्री और पुनः नित्यपति भिक्षा मांगने वाला, ३०-- पुनः नाना प्रकार के रोगों करके उत्तम पुरुषों करके जो निंदनीय हैं जो भागवतादि कथा सुनकर पतिक्लेश पाता है । पुनः मनुभगवान्जी व्रता स्त्रियों से चरण दक्वाते हैं तीसरे अध्याय में श्राद्ध करनेवालों ऐसे मनुष्यों को देव तथा पितृको पात्र कुपात्र का निर्णय करके श्राद्धादि कार्यों में भोजन नहीं कराना वर्णन करते हैं। चाहिये, ऐसे मनुष्यों को मनुजी देव, सो निर्णय यह है:-१-जो वेद विद्या पितृ श्राद्ध कार्यों में अन्न का भी निषेध रहित है, २-जो अपने धर्म से भ्रष्ट है, | करते हैं जब अन्नमात्र का निषेध मनुजी ३-जुवा आदि खेलने वाला, ४-पशु करते हैं तो नाना प्रकार के दान ऐसे पक्षी और कुत्तों को पालने वाला,५-पं- कुपात्रों को क्यों देना चाहिये क्योंकि घयज्ञों से रहित, ६-वेद और ब्राह्मणों जिस धर्मकार्य में १००००००दशलाख फी निंदा करने वाला, ७-रासलीला मूखों के भोजन कराने से जो लाभ होता

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