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वेद वेदांगों को जानने वाला ( ६ ) पाताल से लेकर आकाश पर्यन्त की समस्त भूगोलादि विद्याओं का जानने वाला ( १० ) मनुष्य से लेकर ब्रह्मा पर्यन्त संपूर्ण को अपने आत्मा के समान जानने वाला ( ११ ) ईश्वर अतिथि वेद और पुनर्जन्म में विश्वास रखने ..बाला आस्तिक इन ग्यारह लक्षणों से युक्त ब्राह्मण ही दान का अधिकारी है ।
इसी प्रकार श्रीकृष्ण भगवान् ने भी नवगुणयुक्त को ब्राह्मण कहा है ।
इसी प्रकार कुलदीपिका में भी नंब लक्षणयुक्त को ब्राह्मण कहा हैदानपात्र (अधिकारी) । किं कुलेन विशालेन विद्याहीनेन देहिनाम् | दुष्कुलं चापि विदुपो देवै - रपि सुपूज्यते ॥
( २८ ) जो महान् पुरुष विद्या वा दैवी संपत्ति वा परोपकार में अपना जीवन व्यतीत करते हैं ऐसे पुरुषों का जो मन, वाणी वा शरीर से सत्कार करना है वह ही उत्तम दान है ।
( २६ ) दान अपनी जाति की वृद्धि वा व्यापार की वृद्धि वा अविद्या करके मूर्च्छित जो भारतवर्ष है उसको चैतन्य करने वाले संजीवनी बूटीरूपी जो अखबार हैं उनको देना ।
भावार्थ:-- जो विद्याहीन उत्तम कुल क्षत्री ब्राह्मणादि हैं उनसे मनुष्यों को संसार में क्या धर्म अर्थ का लाभ होता है और नीच से नीच कुल का भी यदि विद्वान् गुणवान् हो तो देवताओं से भी पूजित होता है। तो मनुष्यों को उसके आदर सत्कार करने में क्या कृपणता है जैसे व्यास - बाल्मीकि नीच जाति में उत्पन्न होकर अनेक ऋषि मुनि भारद्वाजादिकों के गुरु हुए हैं ।
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(३०) सबसे श्रेष्ठ दान यह है कि जो प्राणीमात्र को अभयदान देना है, यथाः— प्राणदानात्परं दानं न भूतं न भविष्यति ॥
भावार्थ:- इस संसार में जो प्राणीहै ऐसा दान भूत, भविष्यत् वर्त्तमान मात्र को प्राणदान ( जीव दान) देता काल में और दूसरा दान नहीं है ।
(३१) कुपात्रों को दान देनेवाला दाता पत्थर की नौका ( नाव ) में बैठकर पापरूपी समुद्र में डूबता है सो यह है :
- कुपात्रदानाच्च भवेद्दरिद्री दारिद्र्यदोषेण करोति पापम् । पापप्रभावान्नरकं प्रयाति पुनर्दरिद्री पुनरेव रोगी ।। भावार्थ:: - कुपात्र किसका नाम है सो श्रवण कीजिये - ( १ ) विद्याहीन, ( २ ) विद्वान होकर भी कुकर्मी, (३)