Book Title: Balidan Patra No 003 1915
Author(s): Parmanand Bharat Bhikshu
Publisher: Dharshi Gulabchand Sanghani

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Page 5
________________ ने भी शराबी, कबाबी, व्यभि- जिसने दमन किया था परंतु दुष्टाचारी चारियों को असुरों की पदवी दी है होने से उसी रावण को दशहरे के जैसे- "कुकृत्त कर्म जगत में करही दिन काला मुखकर गधे का सिर तिनको नाम असुर जग धरहीं" गुरु लगा राम लक्ष्मण द्वारा उसको मरवा नानकजी ने जीवहिंसकों को हत्यारे, कर, जला कर इतने पर भी सन्तोष म्लेच्छ और पापियों की पदवी दी है न कर धूली उड़ाना और सनातनजैसे "असंख गलबड हत्या कमाये । धर्म की जय मनाकर रावण जैसे असंख म्लेच्छ मल भन खाये । अत्याचारी को राक्षसों की पदवी असंख पापी पाप कर जाने जोये" जब सनातन धर्म देता है तो वर्तमान हरिभक्त पीपाजी ने ऐसे पापियों के काल के ऐसे दुराचारियों को जो पेट को श्मशानभूमि कहा है “जीव ऐसी राक्षसों की पदवी दे, तो सनाजीव को खाय कर जीव करे व्याख्यान। तनधर्म की इसमें क्या कृपणता है ? पीपाप्रगट देखिये थाली मॉयँ मसाण" सनातन धर्मावलम्बियों को विचाहरिभक्त कवीरजी ऐसे विचारशून्यों ररूपी नेत्रों से देखना चाहिये, कि को दयाहीनों की पदवी देते हैं- मलमूत्र से उत्पन्न भया जो ऐसा "उस हलाल उस झठका कीन्हों, अपवित्र और प्रतिनिषिद्ध मांस दया दुवांते भागी। कहत कबीर सुनारे उसको वेदमन्त्र रूपी सोने के चमचे सन्तों, आग दुवां घर लागी"। से वा वाममार्ग रूपी लोहे के चमचे ___ दयावान पुरुष इनको दैत्यों की सेवा कसाई की छुरी से देवस्थान पदवी देते हैं, सज्जनवृन्द इनको धि- रूपी मंदिर में मार कर वा चौके रूपी कार की पदवी देते हैं, भारतभिन्नु श्मशान में दाह कर मुखरूपी कुंड ऐसे मांसभक्षक पुरुषों के पेट को में हवन कर रसना रूपी माता को कारस्थान कहते हैं जिसमें कि असंख्य भोग लगा कर या पेट रूपी पिता को मुर्दे दफन किये जाते हैं,रामलीला वाले प्रसन्न कर, ईश्वर के नियम को उल्लऐसे पापात्माओं को राक्षसों की पदवी छन कर तज्जनित कोप से देश का देते हैं, रावण जैसे वेदों के वक्ता ब्राह्मण- सत्यानाश कर विपरीत धर्मियों द्वारा कुलशिरोमणि पुलस्त के पौत्र और अपना उपहास करा कर फिर भारतमहापतापी इन्द्रादि देवताओं को भी वंशी कहाना इससे परे और क्या

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