Book Title: Balidan Patra No 003 1915
Author(s): Parmanand Bharat Bhikshu
Publisher: Dharshi Gulabchand Sanghani

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Page 7
________________ अवस्थाहीन (असमर्थ) वामनजी को वाले, राजरूपी सर्वसिद्धियों के सुखों दान दिया था, जिसका कि चित्र आप के चाहने वाले पुरुषों को उचित है कि लोगों के दृष्टिगोचर है, इसी को ईंट पत्थर के देवता को त्याग कर बलिदान कहते हैं। यही चार अक्षर सर्वव्यापी ईश्वर की प्रसन्नता के बली पुरुषों का दान सर्वमान्य प्रामा- निमित्त अहिंसारूपी परमपुष्प, ब्रह्मणिक मानना चाहिये । और ऐसे चर्य धारण कर, इन्द्रियों का निरोध, उत्तम अर्थ को त्यागकर स्वार्थान्ध दया, क्षमा और ज्ञान ये पांच पुष्प पुरुषों ने सर्वोपयोगी मृक, असहाय भगवान् को समर्पण कर पश्चात् यह जीवों को अनेक प्रकार के जीतेजी। बलिदान करना चाहिये सो बलिकष्ट पहुंचाकर अर्थात् जीते जीवों का दान यह है:हाथों से चमड़ा चीरना वा गले की कामक्रोधौ विघ्नकृतौ वलिं दत्वा जपं त्वचा उतारना तथा गले की दोनों चरेत् । मालावर्णमयी प्रोक्ता कुण्डली. बाजू खून की नसों को खींच २ कर सूत्रयंत्रिता ॥ महानिर्वाण तन्त्र ॥ और नसों को काटकर खून को भावार्थ:-फिर काम क्रोधादि जो इंट पत्थरों के देवता पर चढ़ाना, दुष्ट संपूर्ण सिद्धियों के नष्ट करने वाले पश्चात् उसका गला काटना, उसके | हैं इनको बलिदान देकर भगवान् द्वारा देवताओं को प्रसन्न करना, यह | का जप, कीर्तन, गुणानुवाद गायन अथ बालदान शब्द का करालया ह करो । इस प्रकार कुण्डलीसूत्र में इस अर्थ को त्याग कर हे स्वार्थान्ध! गुंथी हुई माला ही श्रेष्ठ है । प्रमादके वशीभूत, हे वाममार्गियो ! दान देना ही मनुष्यजन्म की सफअत्याचारियो ! जो तुम ईश्वर की प्रसन्नता वा महान् सुख की इच्छा लता है सो जैसा कि श्रीकृष्ण भगवान् चाहते हो तो पत्र पुष्पादि से पूजा । ने कहा है सो यह है:करो, सो पत्रपुष्प ये हैं: दातव्यमिति यदानं दीयतेऽनुपकाअहिंसा परमं पुष्पं पुष्पमिन्द्रिय- रिणे । देशे काले च पात्रे च तदानं निग्रहः । दयाक्षमाज्ञानपुष्पं पञ्चपुष्पं सात्विकं स्मृतम् ।। ततः परम् ॥ महानिर्वाण तन्त्र ॥ भावार्थ:-दान देना ही मनुष्य का * भावार्थ:-कल्याण की इच्छा वाले मुख्य कर्तव्य है, ऐसा विचार कर या संपूर्ण सिद्धिरूपी सुखों को चाहने | जो बिना उपकार किसी ( अन्नाश्रित

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