Book Title: Balidan Patra No 003 1915
Author(s): Parmanand Bharat Bhikshu
Publisher: Dharshi Gulabchand Sanghani

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Page 10
________________ वृद्धि, हत्या द्वारा पाप की वृद्धि, रोग भगवान की यादगार रखने वाले हैं। शोक की वृद्धि और कृश्चियनों की वृद्धि, (१२) बारहवां दान-महामंडल भारत सन्तान की हानि, भारतधर्म आदि जो पक्षपात रहित उपदेश की की हानि, भारतधन की हानि यदि वृद्धि करने वाले हैं उनको देना। व्यभिचार से पकड़े जायं तो अपने (१३) तेरहवां दान-कुष्ठि रोगमान धन की हानि, दुष्टजनों द्वारा ग्रसिताश्रम को देना । दोनों को मरवाने से हानि, गर्भ के (१४) चवदहवां दान-पागल प्रकाश होने से कुल मर्यादा की हानि, आश्रम को देना। भारत संतान उच्च कुल वालों के वीर्य (१५) पन्द्रहवां दान-अंधों के की नीच कुल में जाने से हानि, दुष्टों | आश्रम को देना। द्वारा गर्भपात होने से हानि । (१६) सोलहवां दान-धर्मार्थ (६) नववां दान-कन्या पाठशा- औषधालय तथा अस्पताल आदि ला को देना, जिसके न होने से विप- को देना। रीत धर्मियों के निकट कन्याओं को (१७) आयुर्वेद के जीर्णोद्धारक भेजने से भारतधर्म का जो आचरण अर्थात् वनस्पतियों के प्रादुर्भाव करने है वह नष्ट होता है। वालों को देना। ___ (१०) दशवां दान-संपूर्ण विद्याओं (१८) जिस देश में भारतभिक्षु की वृद्धि के निमित्त पुस्तकालय, उप- विद्या, तप, सत्य उपदेश के निमित्त देश भवनों के निमित्त देना तथा जिन निवास करते हैं उनको अन्न वस्त्र मंदिरों में दुष्ट कर्म नहीं होते सदैव । और निवासस्थान की सहायता कथा, कीर्तन, संध्या, अग्निहोत्रादि देने वाले जो हरिभक्त हैं उनको देना। नित्यकर्म होते हैं उनका जीर्णोद्धार (१६) जिस स्थान में यात्रिआदिकरना। कों को निवासस्थान का कष्ट हो __ (११) ग्यारहवां दान-भारतवर्ष के वहां उनके लिये धर्मशाला, बगीचा हुनर और कारीगरी कला कौशलादि वा तालाव, वावड़ी, कूप, प्याऊ वा की वृद्धि करना चाहते हैं उन भारतीय | मार्ग सुधार कराना वा वृक्ष लगवाना, विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालय पुल बंधवाना, अन्नक्षेत्र में अर्थात् जहां आदि को देना क्योंकि विश्वकर्मा सुपात्र वा दीन दुःखियों को अन्न

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