Book Title: Balidan Patra No 003 1915
Author(s): Parmanand Bharat Bhikshu
Publisher: Dharshi Gulabchand Sanghani

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Page 3
________________ ॥श्री पशुपतये नमः ॥ बलिदान पत्र नं०३. द्वितीया वृत्ति देवता असुर और मनुष्य का कर्तव्य विचाररूपी तराजू पर तोलकर देखना चाहिये । - - श्री श्री १०८ श्री नैपालमुकुटमणि | तृणमिव त्याज्यमप्युक्तं परमेष्ठिना ॥४॥ श्री महाराजाधिराज श्री चन्द्र शमशेर | वशिष्ठ ॥ बहादुर आज्ञा देते हैं कि डाक्टर रत्न- भावार्थ:-केवल शास्त्र के आधार दासजी, स्वामीजी से प्रमाण ले आओ, परही निर्णय नहीं करना चाहिये, हम अति निषिद्ध बलिदान को बंद क्योंकि स्वार्थी पुरुषों ने दूधमें पानी करेंगे. डाक्टर साहब! लीजिये श्रीमान् मिला दिया है । जो विचार युक्ति से की भेट कीजिये, वाममार्गी हत्याचा- रहित होता है उससे धर्म की हानि रियों के मंदिरों पर कृपया इसे लगवा होती है। दीजिये। हे रामचन्द्र ! जो वचनयुक्ति करके दृषणं ज्ञानहीनानां भूषणं ज्ञान- युक्त हो वह बालक तथा मूर्ख से भी ग्रहण करना और जो वचन चक्षुषाम् ॥ १॥ वज्रसूची उपनिपद् ।। युक्ति से रहित हो, साक्षात् ब्रह्माजी ___ भावार्थ:-जो ज्ञानरूपी नेत्रसे रहित का भी हो तो सूखे तृण के समान हैं उनको यह दूपण है और जो ज्ञान त्याग करना चाहिये । परमेश्वर ने ...रूपी नेत्र से संयुक्त हैं उनको यह | 4 | इसीलिये मनुष्य को बुद्धि दी है। भूषण है। प्रजापतौ पितरि ब्रह्मचर्यमूषुर्देवा त्यजेद्धर्म दयाहीनं विद्याहीनं गुरूं मनुष्या असुराः। उषित्वा ब्रह्मचर्य देवा स्यजेत् ।। २ ॥ चाणक्य । ऊचुः ब्रवीतु नो भवानिति । तेभ्यो भावार्थ:-दयाहीन धर्म को और हैतमक्षरमुवाच द इति । विद्याहीन गुरुको त्याग देना चाहिये॥ अथ हैन मनुष्या ऊचुः ब्रवीतु नो केवलं शास्त्रमाश्रित्य न कत्तव्यो हि भवानिति । तेभ्यो हैतमत्तरमुवाच द निर्णयः ॥ युक्तिहीने विचारे तु धर्महा- इति । अथ हैनं असुरा ऊचुः ब्रवीतु नो निर्विजायते ।। ३ ॥ बृहस्पति ।। युक्ति- भवानिति, तेभ्यो हैतमक्षरमुकाच द युक्तमुपादेयं वचनं बालकादपि ॥ अन्य- | इति । तदेतदेषा दैवी वागनुवदति स्त

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