Book Title: Balidan Patra No 003 1915
Author(s): Parmanand Bharat Bhikshu
Publisher: Dharshi Gulabchand Sanghani

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Page 2
________________ ऐसे श्रीमानों को कोटानुकोट वार धन्यवाद है. जिस प्रकार श्रीमान नैपाल नरेश ने इनकी पुकार सुनी है उसी प्रकार महाराजा इन्दोर ने भी दशहरा के दिन राज और जमीदार के दोनों भैंसों को, जो कई वर्षों से बीसे घायल कर सवारों द्वारा कष्ट देकर मारे जाते थे, इस वर्ष दोनों प्राणियों को अभयदान देकर अक्षय पुण्य को प्राप्त किया है. विलायतयात्रा से पधारने पर श्रीमान् महाराजा साहब जोधपुर ने भी भैंसों और कई बकरों को अभय दान देकर उन्हीं बकरी और भैसों के मूल्य की मिठाई मंगाकर पुजारी और माताजी के मांसलोलुप भक्तों को खिला कर उनके हृदय में जीवदया का अंकुर उत्पन्न कर इस अक्षयपुण्य रूपी वृक्षकी सुयश रूपी शाखा को समस्त भूमण्डल में इसी अल्पायु में फैलादी, निस्सन्देह हमें ऐसे ही श्रीमानों से देश के कल्याण की आशा है, हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि मनुष्यमात्र को ऐसी सुमति दे और जहां से ऐसे कुकर्म की निवृत्ति हो सज्जनवंद वहां २ से सूचना भेजते रहें। विज्ञापन ॥ जो सद्गृहस्थ इस पुस्तक को विना मूल्य नहीं लेना चाहे वे नीचे लिखे पते पर छपाई का मूल्य ) और डाकमहसूल ॥ भेजकर भी मंगा सकते हैं और जो सज्जन इस परोपकारी कार्य में सहायता देना चाहें वे भी नीचे के पते पर यथाशक्ति द्रव्य भेज सकते हैं. इसके अतिरिक्त जो सज्जन लेखक का कार्य तथा तस्वीर, ब्जाक वा लेख देसकें वे भी दे सकते हैं। १-सेठ नागरदास मणीभाई खजांची. आबू पहाड़ (राजपूताना) ३ हरिद्वार कुंभ २-राजवैद्य पं० रामदयालजी, अध्यक्षआयुर्वेदोक्त औषधालय तथा चिकित्सालय, अजमेर. भूल सुधार ॥ १-पृष्ठ १५ पंक्षी १० में ग्वाल अष्टमी के स्थान में गो-क्रीड़ा, जो दीपमाला के दूसरे दिन होती है । २-पृष्ठ १६ पंक्ती २८ में सरयूपार के स्थान में पटना पार होना चाहिये, सो इस प्रकार स्वयं सज्जन सुधारलें ॥

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