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आत्मानुशासन ___ अर्थ-काम विकारतें मूर्ख भए ऐसे कौन जीव स्त्रीका कटिछिद्र जो योनिस्थान ताकौं प्राप्त होइ खेदखिन्न न हो है, अपि तु सर्व ही तत्काल वा आगामी महा खेदकौं पावै ही है। कैसा है सो स्थान ऊंचे अर परस्पर भिडि गए ऐसे जे दोय कुच तेई भए पर्वतरूप गढ़ तिनिकरि दुःप्राप्य है । बहरि अतिशयकरि त्रिवलीरूप नदी तिनिकरि विषम है, पार उतरनां जहां ऐसा है । बहुरि रोमनिकी जो पंक्ति ताकरि खोटा गमन करनेंका है मार्ग जाका ऐसा है।
भावार्थ-जैसैं जिस स्थानकके मार्ग विपैं उँचे मिले हए पर्वत होइ, अर जातें कठिन पार उतरिए ऐसी नदी होइ, अर वृक्षनिकी सघनतातें दुर्गमता होई तिस स्थानकके पहौंचने विर्षे खेद होय ही होय । तेसैं योनि स्थानक रमणकै पहलै ऊँचे मिले हुए तो कुच हैं। बहुरि जातें खेदछूटना होइ ऐसी त्रिवली है । बहुरि रोमनिकरि दुर्गमता पाइए है ऐसे स्थानककौं प्राप्त होने विर्षे खेद होय ही होय । यहु जो प्रत्यक्ष खेदकौं सुख मानै है सो जैसैं दुखिया मूड फौडनेंविर्षे सुख मानें तैसैं कामकरि पीडित हुवा खेद होनेंविर्षे सुख कल्पै है। तातै काम विकार मिटावना योग्य है।
वसन्ततिलका छन्द व!गृहं विषयिणां मदनायुधस्य
नाडीव्रणं विषमनिवृतिपर्वतस्य । प्रच्छन्नपादुकमनङ्गमहाहिरन्ध्र
माहुबुंधा जघनरन्ध्रमदः सुदत्याः ।।१३३।। ___ अर्थ-ज्ञानी है ते सुदती जो स्त्री ताका जघन रंध्र जो योनिरूप छिद्र ताकौं ऐसा कहै हैं । कैसा? यह विषयी पुरुषनिका विष्टाका घर है। व। कामका जु शस्त्र ताका घाव है। वा विषम मोक्षरूप पर्वत ताका आच्छादित खाडा है । वा कामरूपी बडे सर्पका बिल है ऐसा बतावै है।
भावार्थ-यहु योनि-छिद्र है सो जैसैं विष्टा खेपनेका घर होइ तैसैं कामी पुरुषका वीर्य क्षेपने का स्थानक है । अथवा जैसैं शस्त्र ताका घाव होइ तैसैं यहु कामका शस्त्र जो लिंग ताका घाव है । अथवा जैसैं पर्वतकै आडा छिपा हुवा खाडा तहां न जानेका कारण होइ । तैसैं यहु मोक्षक आडा, अज्ञानी जाकौं बुरा जानैं ऐसा तहां न जानेका कारण है । अथवा जैसे बिलविर्षे सर्प रहता होय तहां जो जाय ताकों वह सर्प डसैं तैसैं या विषै
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