Book Title: Atmanushasan
Author(s): Todarmal Pandit
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 182
________________ प्रत्येक वस्तु अनेकात्मक है १२१ कौं अर तिस प्रतिपक्षी स्वरूपकौं प्राप्त होत संता नांही नाशकौं प्राप्त हो भावार्थ-शास्त्राभ्यास करनेवाला ज्ञानी केवल शब्द अलंकारादिविर्षे ही नांही मनकौं रमावै है । ऐसें वस्तु स्वरूपकौं चितवै है। एक कोई जीवादिक वस्तु है सो नित्य भी है, अनित्य भी है। 'सत्तारूप भी है, असत्ता रूप भी है । एक भी है, अनेक भी है इत्यादि तिसरूप है अर तिसरूप नाही भी है। सो ऐसे भावकौं प्राप्त होता जोवादिक वस्तु है सो नाशको प्राप्त न हो है, अपने स्वभावरूप रहै है । ऐसे ही अनादिनिधन समस्त जीवादिक पदार्थ पाईए हैं। बहुरि ऐसे ही शास्त्रद्वारकरि तत्त्व ज्ञानी जीव चितवै है सो ऐसे चितवनतें वस्तु स्वरूप भासें सम्यग्दर्शनादिककौं पाइ अपना कल्याण करै है। आगें ऐसा ज्ञान तौ भ्रमरूप होसी ऐसी कोई आशंका करै ताकौं निराकरण करता सूत्र कहै हैं एकमेकक्षणे सिद्धं ध्रौव्योत्पादव्ययात्मकम् । अबाधितान्यतत्प्रत्ययान्यथानुपपत्तितः ॥१७२॥ अर्य-एक ही वस्तु एक ही कालविर्षे ध्रोव्य उत्पाद व्यय इनि तीनूंस्वरूप है। इहां हेतु कहे है-प्रमाणकरि अखंडित ऐसी जु यह अन्य है, ऐसी प्रतीति अर यह सोई है ऐसी प्रतीति ताकी अन्यथा असिद्ध है। __भावार्थ-जो एक ही अपेक्षातै वस्तुकौं तिसरूप भी कहिये अर तिसरूप नाही भी कहिये तो भ्रम ही है। बहुरि अन्य अपेक्षातें कहिए तो विरोध नाही। जैसैं पुरुषकौं एक ही पुरुषका पिता भी कहिए, पुत्र भी कहिए तौ भ्रम ही है। अर औरका पिता, औरका पुत्र कहिये तो विरोध नांही । वस्तु स्वरूपकौं साधै है, सो इहां एक ही वस्तु नित्य अनित्य कह्या ताका उदाहरण कहै हैं। कोई एक पुरुष रंक था बहुरि वह राजा भया, तहां अवस्था पलटनेकी अपेक्षा पहले रंक था अब राजा भया ऐसा अन्यपना 'भासै है। तातें यह अन्य है ऐसा मानीए है। बहरि मनुष्यपनांकी अपेक्षा पहले भी मनुष्य था, अब भी वही मनुष्य है ऐसा एकपनां भारी है, तातें यहु सोई है, ऐसा मानीये है । सो ऐसी प्रतीति प्रत्यक्षादि प्रमाणनि १. सत्तारूप भी है, एकरूप भी है । ज० १७१, ५ २. अर तिसरूप नाही भी कहिए तो विरोध नाहीं, ज० १७२, ४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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