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आत्मानुशासन , आगै शिष्य प्रश्न करै है:-दोय भागते आत्माका जुदा करना तपके आचरण” होय है सो तप करना कठिन, ताका समाधान करै है
करोतु न चिरं घोरं तपः क्लेशासहो भवान् । चित्तसाध्यान् कषायारीन् न जयेद्यत्तदज्ञता ।।२१२।। अर्थ-जो तूं क्लेश सहिवेकू असमर्थ है, चिरकाल दुर्धर तप न करै तौ मन ही करि जीते जाहि ऐसे क्रोध मान माया लोभ बैरी तिनिकू तौ जीति, अर न जीतै तौ बड़ी अज्ञानता है। कषाय जीतिवेमैं तौ कायक्लेश नाहीं, मनही की सुलटनि है। - भावार्थ-शरीरके क्लेशकरि तपको तू कठिन जाने है। दुर्द्धर तप न करि सकै तौ मन वसिकरि कषाय ही क्षीण पारि । कषाय जीतिवेमें कायक्लेश नाही, मन ही का कारण है, ए कषाय जीवके शत्रु हैं।
आगै कहै हैं कि जौ लगि कषायनिकू न जीतें तौ लगि मुक्तिके कारण जे उत्तम क्षमादि गुण तिनकी प्राप्ति तोकू अति दुर्लभ है
मालिनी छंद हृदयसरसि यावन्निर्मलेऽप्यत्यगाधे वसति खलु कषायग्राहचक्रं समन्तात् । श्रयति गुणगणोऽयं तन्न तावद्विशङ्क
सयम शमविशेषैस्तान् विजेतु यतस्व ॥२१३।। अर्थ-जौ लगि तेरे निर्मल अगाध हृदयरूप सरोवरविर्षे निश्चय सेती कषायरूप जलचरनिका समूह बसै है तौ लगि गुणनिका समह निशंकपणे प्रवेश न करि सके। ताशम दम यम भेदनिकरि कषायनिके जीतिवेका जतन करि । शम कहिये समता भाव रागादिकका त्याग । दम कहिये मन इंद्रीनिका निरोध । यम कहिये यावत् जीवहिंसादिकका त्याग। . भावार्थ-जौ लगि तेरे हृदयवि कषायनिका संचार है तौ लगि शम दमादि गुणनिका लेशमात्रहू अंगीकार नाही। तारौं कल्याणके निमित्त कषाय तजि।
आगै कषायनिका जीतना सो ही मोक्षका कारण है ऐसा कहि करि जे कषायनिके आधीन होइ हैं तिनको हास्य करते संते कहै हैं
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