Book Title: Atmanushasan
Author(s): Todarmal Pandit
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 212
________________ १५१ मायाचार महादुराचार है हतः" । न जानिए, नर जानिए या कुजर । सो या मायाचारकै वचनकरि राजा युधिष्ठिर मित्रनिमैं लघु भए । तातें अल्प हू मायाचार बहुत गुणनिकू हते है। ___ भावार्थ-मायाचार महादुराचार है। मारीच मंत्री लघुताकू प्राप्त भया । राजा युधिष्ठिर सारिखे "अश्वत्थामा हतः" या वचन कहिवेकरि लज्जाकौं प्राप्त भए । अहो भव्य जीव हो ! मायारूपी ओंडे खाडेरौं डरो। यह खाडा मिथ्या भावरूपी महा अंधकारमई है। जाविर्षे लुकि रहे हैं क्रोधादिक महादुष्ट सर्प, जहां खाडा होइ तहा अंधकार हू होइ । अर तामें सर्प हू रहै। . भावार्थ-यह मायारूप खाडा अति औंडा है। जामैं मिथ्यारूप अंधेरा है । जामैं क्रोधादि सर्प रहै हैं। - अर्थ-हे जीव तू ऐसा संदेह मति राखै, जो गुप्त' पाप मेरा कोऊ न जानेगा, बुद्धिवान ह न जानें तौ और कैसे जानें ? अर मेरे मोटे गुणनिका यह पाप कैसे आच्छादन करैगा । ऐसी त कदापि मति मानै । प्रगट देखि, चन्द्रमा अपनी उज्ज्वल किरणनिकरि जगतके आतापकू निवारै है। सो ऐसे चंद्रहुकूप्रच्छन्न जो राहु सो आच्छादित करै है। या बाता सब ही जाने हैं । ऐसा कौन जो या बात को न जाने। आगै लोभ कषाय थकी जीवका अकाज दिखावै . हिरणीछंद वनचरभयाद् धावन् दैवाल्लताकुलबालधिः किल जडतया लोलो बालबजेऽविचलं स्थितः । वत स चमरस्तेन प्राणैरपि प्रवियोजितः परिणततृषां प्रायेणैवंविधा हि विपत्तयः ॥२२३।। अर्थ-देखो लोकवि प्रसिद्ध है-बनचर जो भील अथवा व्याघ्र ताके भय थकी सुरह गाय भागी सो दैवयोगतै ताकी पूछ बेलित उलझी सो मूढताकरि बालनका समूह जो पूछ ताके लोभत खरी होइ रही सो बनचर. प्राणनितै रहित करी । तातें जो तृष्णातुर हैं तिनकै बाहुल्यता करि या प्रकार विपत्ति हो है। १. हे जीव तू ऐसो तो गुप्त, ज० पु० १२२,३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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