Book Title: Atmanushasan
Author(s): Todarmal Pandit
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 236
________________ केवलज्ञानकी सकलज्ञता १७५ आगे कहै हैं कि ग्रंथकी समाप्तिविषै ग्रंथका कर्ता अपने गुरुके नामपूर्वक अपना नाम प्रकट करे है जिनसेनाचार्य पादस्मरणाधीन चेतसाम् । गुणभद्र भदन्तानां कृतिरात्मानुशासनम् || २६९ ॥ अर्थ - जिन - सेना जो मुनिमंडली ताके आचार्य श्री गणधरदेव तिनके चरणकमलके सुमरण वर्षे आधीन है चित्त जिनका ऐसे गुणनिकरि भद्र कहिए कल्याणरूप, भदंत कहिए पूज्य पुरुष, जैनके आचार्य तिनकी कृति है इह आत्मानुशासन । अर दूजा अर्थ जिनसेनाचार्यके चरणकमल तिनके स्मरणविर्षं आधीन है चित्त जिनका ऐसे गुणभद्र पूज्य तिनिकरि किया है इह आत्मानुशासनका वर्णन । भावार्थ - जिनवरकी सेनाके आचार्य सबमैं मुख्य गणधरदेव हैं । तिनकी भक्तिविषै है आरूढ चित्त जिनका ऐसे गुणनिकरि भद्र कहिए कल्याणरूप मुनिराज जैनके आचार्य तिनका भाख्या इह ग्रंथ है । अथवा जिनसेनाचार्यका शिष्य जो गुणभद्र ताका भाष्या है । ए दोऊ अर्थ प्रमाण हैं । आगे कहै हैं कि श्री ऋषभदेव तुमको कल्याणके कर्ता होहु । ऋषभो नाभिसूनर्यो भूयात्स भविकाय वः । यज्ज्ञानसरसि विश्वं सरोजमिव भासते ॥ २७० ॥ अर्थ-नाभि राजाके पुत्र श्री ऋषभदेव तुमको महा कल्याणके निमित्त होहु । जाके ज्ञानरूप जलविषै सकल जगत कमलतुल्य भासै है । Jain Education International इति आत्मानुशासन शास्त्र संपूर्ण For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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