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Āptamīmāṁsā
Fault in accepting inherence as independent of the constituent parts (avayava) and the aggregate (avayavi):
आश्रयाऽऽश्रयिभावान्न स्वातन्त्र्यं समवायिनाम् । इत्ययुक्तः स सम्बन्धो न युक्तः समवायिभिः ॥६४॥
सामान्यार्थ - यदि यह कहा जाए कि समवायियों में आश्रय-आश्रयी - भाव (अवयव आश्रय है और अवयवी आश्रयी है) होने के कारण स्वतंत्रता नहीं है जिससे देश-काल की अपेक्षा से भेद होने पर भी वृत्ति बनती है, तो ऐसा कहना ठीक नहीं है। क्योंकि जो स्वयं असम्बद्ध है ( समवाय अनाश्रित होने से असम्बद्ध ही रहता है) वह एक अवयवी का दूसरे अवयवी के साथ सम्बन्ध कैसे करा सकता है?
It might be said that there exists a relationship of substratum and superstratum between two entities (viz. the constituent parts and the aggregate avayava and avayavi) through inherence (samavāya), and due to inherence the two cannot remain independent of each other even at different space and time. We respond that if inherence (samavāya) itself is independent of the two entities, how can it possibly create a relationship between them?
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