Book Title: Apbhramsa Ek Parichaya
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 13
________________ है कि लोक-भाषा बदलती चलती है और जो बदलती चलती है वही लोकभाषा होती है। धीरे-धीरे एक नई भाषा 'अपभ्रंश' का जन्म लोक-भाषा के रूप में हुआ और ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी में वह अपभ्रंश भाषा साहित्यिक अभिव्यक्ति के लिए सशक्त माध्यम बन गई। "शीघ्र ही उसे स्वयंभू जैसा प्रतिभाशाली कवि प्राप्त हो गया, जिसने भारतीय वाङ्मय के इतिहास में अपभ्रंश-युग का प्रवर्तन किया। विद्वानों का मत है कि अपभ्रंश लम्बे समय तक उत्तरी भारत की भाषा बनी रही। डॉ. चाटुा के अनुसार शौरसेनी अपभ्रंश राष्ट्रभाषा बन गई थी। पश्चिम से पूर्व तक उसी का प्रयोग होता था। यहाँ यह समझना चाहिए कि भारतीय संस्कृति को समग्र रूप से जानने के लिए लोकभाषाओं के साहित्य का अध्ययन एक अनिवार्यता है। जन-जीवन में व्याप्त सांस्कृतिक मूल्यों को आत्मसात् करने की ओर झुकाव लोक-भाषाओं के साहित्य के प्रति रुचि जागृत करने से ही होता है। अपभ्रंश का स्वरूप व विकास __उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अपभ्रंश का अर्थ है - लोक-भाषा या जनबोली । सामान्य लोगों की बोलचाल की भाषा ही जनबोली होती है। आचार्य भरत मुनि (तीसरी शती) ने जिस भाषा को 'उकारबहुला' (अपभ्रंश) कहा है वह हिमालय प्रदेश से लेकर सिंध तथा उत्तर पंजाब तक प्रचलित थी। इस उत्तरपश्चिमी भारतीय बोली को ही संस्कृत वैयाकरणों ने अपभ्रंश नाम दिया; क्योंकि लोक-भाषा में विभिन्न क्षेत्रों में एक ही अर्थ में विभिन्न शब्द थे, जैसे - 'गौ' के लिए गावी, गोणी, गोता, गोपोतलिका इत्यादि लोक-प्रचलित विभिन्न शब्द हैं। संस्कृत ने इन शब्दों को अपभ्रंश नाम दिया। पं. चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' ने अपभ्रंश का अर्थ 'नीचे को बिखरना' (लोक में विकसित होना) बताया है। उन्होंने लिखा कि अपभ्रंश या देशी भाषा और कुछ नहीं बाँध से बचा हुआ पानी है या वह जो नदी-मार्ग पर चला आया, बाँधा न गया। उनका आशय है कि संस्कृत शब्द एक है तो प्यार के प्रवाह में पानी की तरह सरकनेवाले अपभ्रंश शब्द अनेक। 'माता' संस्कृत शब्द है, उसका 'मातु', 'माई' और 'मावो' तक पहुँच जाना अधिक मधुर बनने के लिए है। शब्दों का नया रूप लेना दूषण नहीं, भूषण है। 'गौ' के लिए गावी, गोणी, गोता, गोपोतलिका आदि अनेक अपभ्रंश शब्दों में लोक-जीवन की जीवन्तता है, जन-जीवन की सुगन्ध है। "ध्यान देने अपभ्रंश : एक परिचय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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