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कन्नौजी प्रदेश - कन्नौजी इटावा, फर्रुखाबाद, शाहजहाँपुर, कानपुर, हरदोई, पीलीभीत आदि में बोली जाती है। यह भी शौरसेनी अपभ्रंश से ही निकली है।
ब्रजभाषा प्रदेश - ब्रजभाषा आगरा, मथुरा, अलीगढ़, धौलपुर, मैनपुरी, एटा, बदायूँ, बरेली तथा आसपास के क्षेत्र में बोली जाती है । इसका विकास शौरसेनी अपभ्रंश के मध्यवर्ती रूप से हुआ है।
अवधी प्रदेश - अवधी का क्षेत्र लखनऊ, इलाहाबाद, फतेहपुर, मिर्जापुर, उन्नाव, रायबरेली, सीतापुर, फैजाबाद, गोंडा, बस्ती, बहराइच, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, बाराबंकी आदि है । अधिकांश विद्वान इस भाषा का संबंध अर्धमागधी अपभ्रंश से मानते हैं। __ भोजपुरी प्रदेश - इस बोली का क्षेत्र बनारस, जौनपुर, मिर्जापुर, गाजीपुर, बलिया, गोरखपुर, देवरिया, आजमगढ़, बस्ती, शाहाबाद, चम्पारन, सारन तथा आसपास का कुछ क्षेत्र है। इसका विकास मागधी अपभ्रंश के पश्चिमी रूप से हुआ है।
(5) कीर्तिलता - विद्यापति-रचित 'कीर्तिलता' में आश्रयदाता कीर्तिसिंह के यश का गान किया गया है। बिहार के दरभंगा जिले के अंतर्गत विसपी ग्राम विद्यापति का जन्म-स्थान था। महाराजा कीर्तिसिंह की दानशीलता, वीरता और राजनैतिक कुशलता का वर्णन इस काव्य में मिलता है । कीर्तिलता चार पल्लवों (भागों) में लिखी गई है । विद्यापति कहते हैं कि देशी वचन सबको मीठे लगते हैं, अत: अवहट्ट (अपभ्रंश) में रचना करता हूँ । कीर्तिसिंह के वंश और पराक्रम के वर्णन से कथा प्रारम्भ होती है । कीर्तिसिंह के पिता राजा गणेश्वर को नवाब असलान ने छल से मार दिया था। कीर्तिसिंह ने अपने पिता का बदला लेने की भावना से असलान के साथ युद्ध करने का निश्चय किया। इस युद्ध में कीर्तिसिंह विजयी हुए। उनका राज्याभिषेक हुआ। आशीर्वाद व मंगल-कामना के साथ काव्य समाप्त होता है। विद्यापति ने जौनपुर नगर का वर्णन बड़े सजीव ढंग से किया है। कीर्तिलता में प्रेरणादायी कथन भी प्राप्त होते हैं - "जन्म मात्र से कोई पुरुष नहीं होता। पुरुष वही है जिसका मान हो, जिसमें धनोपार्जन की शक्ति हो, जो धर्म-परायण हो, आपत्ति-विपत्ति में दीन वचन न बोलनेवाला हो।''
___अपभ्रंश : एक परिचय
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