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निर्गुणपंथी कबीर आदि संत कवियों में दर्शनीय है। तथा बाद में तुलसीदास की दोहावली, मतिराम दोहावली और रहीम आदि के दोहों में होती हुई सत्रहवींअठारहवीं सदी के मध्य से आधुनिक काल तक बढ़ जाती है । मुक्तक काव्यरूप की अभिव्यक्ति में जितना दोहा छन्द सफल रहा है, उतना कोई अन्य छन्द नहीं।''19 अपभ्रंश के दोहों का प्रयोग हिन्दी में कबीर, तुलसी, रहीम आदि भक्तिकाल के कवियों ने तथा बिहारी आदि शृंगार काव्य के कवियों ने दोहा छन्द का भरपूर उपयोग किया है। __ उपर्युक्त तीन अध्यायों में अपभ्रंश भाषा का एक सामान्य और संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया गया है, इससे अपभ्रंश के अध्ययन के महत्त्व को सहजतया समझा जा सकता है। साथ ही राष्ट्रभाषा हिन्दी तथा प्रान्तीय भाषाओं के परिप्रेक्ष्य में अपभ्रंश की भूमिका की भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
अपभ्रंश और हिन्दी
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