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इनमें से निम्नलिखित रचनाओं की सचित्र प्रतियाँ भी उपलब्ध हैं -
1. जसहरचरिउ, 2. पासणाहचरिउ, 3. संतिणाहचरिउ 180
जो रचनाएँ अनुपलब्ध हैं उनके नाम इस प्रकार हैं
1. महापुराणु, 2. पज्जुण्णचरिउ, 3 सुदंसणचरिउ, 4. भविसयत्तकहा, 5. करकंडचरिउ, 6. रत्नत्रयी एवं 7. उवएसरयणमाला ।
महाकवि रइधू को उक्त विशाल साहित्य निर्माण की प्रेरणा अपने पिता हरिसिंह संघवी से मिली थी । रइधू- साहित्य के विशेषज्ञ डॉ. राजाराम जैन के अनुसार - " रइधू अपभ्रंश साहित्य के जाज्वल्यमान नक्षत्र हैं। विपुल साहित्यरचनाओं की दृष्टि से उनकी तुलना में ठहरनेवाले अन्य प्रतिस्पर्धी कवि या साहित्यकार के अस्तित्व की सम्भावना अपभ्रंश साहित्य में नहीं की जा सकती । रस की अमृत - स्रोतस्विनी प्रवाहित करने के साथ-साथ श्रमण संस्कृति में चिरन्तन आदर्शों की प्रतिष्ठा करनेवाला यह प्रथम सारस्वत है जिसके व्यक्तित्व में एक प्रबन्धकार, दार्शनिक, आचारशास्त्र - प्रणेता एवं क्रांतिदृष्टा का समन्वय हुआ है। इधू के प्रबन्धात्मक आख्यानों में सौन्दर्य की पवित्रता एवं मादकता, प्रेम की निश्छलता एवं विवशता, प्रकृतिजन्य सरलता एवं मुग्धता, श्रमण संस्था का कठोर आचरण एवं उसकी दयालुता, माता-पिता का वात्सल्य, पाप एवं दुराचारों का निर्मम दण्ड, वासना की माँसलता का प्रक्षालन, आत्मा का सुशान्त निर्मलीकरण, रोमांस का आसव एवं संस्कृत के पीयूष का मंगलमय सम्मिलन, प्रेयस् और श्रेयस् का ग्रन्थिबन्ध और इन सबसे ऊपर त्याग एवं कषाय-निग्रह का निदर्शन समाहित है । 81
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प्रबन्ध-काव्य की धारा के कवियों में धाहिल (पउमसिरीचरिउ), पदमकीर्ति (पासणाहचरिउ ), श्रीधर ( सुकुमालचरिउ, पासणाहचरिउ, भविसयतचरिउ ), देवसेनगणि (सुलोचनाचरिउ ), सिंह (पंजुण्णचरिउ ), लाखू (जिणदत्तचरिउ ), लक्खमदेव (मिणाहचरिउ ), अमरकीर्ति ( छक्कमोवएस), यश: कीर्ति (चंदप्पहरचरिउ), नरसेन ( श्रीपालचरित), जयमिहल ( वर्द्धमानचरिउ ), माणिक्यराज ( अमरसेनचरिउ, (मृगांक लेखाचरित्र) आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
णायकुमारचरिउ ),
भगवतीदास
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अपभ्रंश : एक परिचय
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