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का स्पष्ट पता चलता है।''70 'देशीनाममाला' में हेमचन्द्र ने अपभ्रंश में प्रयुक्त देशी शब्दों का चयन करके एक अपूर्व कार्य किया है । हेम-व्याकरण में संकलित अपभ्रंश के दोहे अपभ्रंश साहित्य का गौरव बढ़ानेवाले हैं । "इनका काव्यसौन्दर्य निराला है, अपने आपमें बेजोड़ है। इनकी आधार-भूमि आध्यात्मिक नहीं, इहलौकिक है । लौकिक जीवन में भी कितना प्रचुर रस उत्पन्न किया जा सकता है, लोगों को उससे आप्लावित किया जा सकता है, ये दोहे इसके स्पष्ट प्रमाण हैं। इन दोहों में शौर्य और श्रृंगार का, संयोग और वियोग का, दान और मान का, विश्वास और स्वाभिमान का, पुरुष के पौरुष और वीर रमणी के दर्प का जैसा श्लाघनीय रूप मिलता है, अन्यत्र दुर्लभ है। 71
आचार्य हेमचन्द्र का जन्म गुजरात के धक्कलपुर, धन्धूका नामक गाँव में हुआ था। इनको सोलंकी चालुक्य राजा सिद्धराज जयसिंह व उनके भतीजे कुमारपाल का संरक्षण प्राप्त था।
हरिदेव (15वीं शती) - अपभ्रंश की प्रबन्धात्मक रचनाओं की परम्परा में कवि हरिदेव द्वारा रचित 'मयणपराजयचरिउ' दो संधियों का एक रूपककाव्य है । "अपभ्रंश के उपलब्ध रूपक-काव्यों में यह सर्वश्रेष्ठ है।''72 "इस रचना में प्रतीक रूप से जीव के मोक्ष-प्राप्ति का प्रयत्न और उस प्रयत्न में कामादि विकारों द्वारा बाधा डाले जाने का वृतान्त है।''73 कथा संक्षेप में इस प्रकार है - "राजा कामदेव, मोह नामक मंत्री और अहंकार, अज्ञान आदि सेनापतियों के साथ भवनगर में राज करते हैं । चरित्रपुर के राजा जिनराज उनके शत्रु हैं, क्योंकि वे मुक्ति अंगना से विवाह करना चाहते हैं । कामदेव, राग-द्वेष नामक दूत के द्वारा उनके पास यह संदेश भेजते हैं कि या तो आप अपना यह विचार छोड़ दें और अपने तीन रत्न - दर्शन, ज्ञान और चारित्र मुझे सौंप दें या युद्ध के लिए तैयार हो जाएँ। जिनराज ने कामदेव से लोहा लेना स्वीकार किया। अंत में काम परास्त होता है।''74 कवि हरिदेव ने आचार्य शुभचन्द्र द्वारा रचित ज्ञानार्णव को अपनी रचना का आधार बनाया है। मदन (कामदेव) इस काव्य का नायक है। वह उत्कृष्ट अभिलाषी और महत्वाकांक्षी है, क्रियाशील है और घटनाचक्र के केन्द्र में है । उसके प्रतिपक्षी नायक जिनेन्द्र हैं और नायिका सिद्धि है । कवि ने इन तीन मुख्य पात्रों के आधार से काव्य को रोचक बनाने का सफल प्रयास किया है।
___ अपभ्रंश : एक परिचय
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