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नयनंदी (11वीं शती) - प्रबन्ध-काव्यों की परम्परा में नयनंदी का 'सुदंसणचरिउ' एक सुविख्यात काव्य है। यह 12 संधियों में पूर्ण हुआ है। णमोकार महामंत्र के महात्म्य प्रतिपादन हेतु यह काव्य लिखा गया है। यह जीवन-मूल्यों के प्रति समर्पित चरितकाव्य है। नयनंदी यह भली भाँति समझते प्रतीत होते हैं कि मनुष्यों का मूल्यात्मक-व्यवहार ही समाज के चहुंमुखी विकास के लिए महत्वपूर्ण है । व्यवहार में मूल्यों का अभाव समाज में अराजकता को जन्म देता है। कर्तव्यहीनता, दुराचार व शोषण की प्रवृत्ति नैतिक मूल्यों में अनास्था का परिणाम है। नैतिक मूल्यों का वातावरण, नैतिक मूल्यों के ग्रहण की प्रथम सीढ़ी है। इस वातावरण के निर्माण में काव्य का बहुत बड़ा योगदान होता है। रस, अलंकार और छन्द काव्यरूपी शरीर को निस्संदेह सौन्दर्य प्रदान करते हैं, किन्तु काव्यरूपी शरीर का प्राण होता है उसमें मूल्यात्मक चेतना की उपस्थिति। काव्य में प्रत्येक रस की अभिव्यक्ति एक विशिष्ट प्रयोजन को लिये हुए होती है, किन्तु काव्य का अंतिम प्रयोजन समाज में शाश्वत मूल्यों को सींचना व उनको जीवित रखना ही होता है । सामयिक मूल्यों के लिए लिखा गया काव्य महत्वपूर्ण हो सकता है पर उसमें प्रतिपादित शाश्वत मूल्य ही उसको अमरता प्रदान करते हैं । व्यसन महामारी की तरह व्यक्ति व समाज को खोखला कर देते हैं। उनका त्याग समाज में आर्थिक व्यवस्था, लैंगिक सदाचार, व्यक्तिगत एवं कौटुम्बिक शांति और अहिंसात्मक वृत्ति को पनपाता है । शील का पालन जीवन का आभूषण है। चरित्र को नष्ट होने से बचाना मूल्यों के प्रति निष्ठा का द्योतक है। अतः कहा जा सकता है कि नयनंदी ने समाज में शाश्वत मूल्यों के प्रसार हेतु ही 'सुदंसणचरिउ' की रचना की है।
नयनंदी मालव देश के धारा नगर के निवासी हैं । 'सुदंसणचरिउ' की रचना धारा नगर के जैन मंदिर के महाविहार में हुई। "सुदंसण इस चरितात्मक महाकाव्य का धीर प्रशान्त नायक है। इसी के नाम पर महाकाव्य का नामकरण भी किया गया है। उसका चरित्र केन्द्रीय है और अन्य पात्र उसके सहायक हैं । वह अनेक गुणों से मंडित, दृढव्रती, आचारनिष्ठ, सुन्दर मानव है। भावुकता उसका स्वभाव है। वह प्रेमी है, जिसके वशीभूत हो वह मनोरमा की ओर आकृष्ट होता है, परन्तु अपने ऊपर आसक्त रानी अभया और कपिला के प्रति वह सर्वथा उदासीन है। यही गतिशीलता और स्थिरता उसके चरित्र को उत्थित करती है।''60 अपभ्रंश : उसके कवि और काव्य
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