Book Title: Apbhramsa Bharti 1996 08
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ प्रकाशकीय अपभ्रंश साहित्य और भाषा के अध्येताओं के समक्ष अपभ्रंश भारती का आठवाँ अंक सहर्ष प्रस्तुत है। छठी शताब्दी से पन्द्रहवीं शताब्दी तक सम्पूर्ण भारत में अपभ्रंश भाषा में साहित्य-रचना होती रही। अपभ्रंश साहित्य में लोक-जीवन के तथ्य बहुत अधिक घुले-मिले हैं। इस साहित्य में सांस्कृतिक तत्वों को बड़ी विशिष्टता के साथ पल्लवित किया गया है। समूचा अपभ्रंश साहित्य आस्था व अनुभूति से ओत-प्रोत है। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण अपभ्रंश साहित्य के अध्ययन-अध्यापन की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। अपभ्रंश साहित्य के बहुआयामी महत्व को समझते हुए ही दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी द्वारा अपभ्रंश साहित्य अकादमी की स्थापना सन् 1988 में गई। अपभ्रंश भाषा के अध्ययन-अध्यापन को समुचित दिशा प्रदान करने के लिए अपभ्रंश रचना सौरभ, प्राकृत रचना सौरभ, अपभ्रंश काव्य सौरभ, पाहुड दोहा चयनिका आदि पुस्तकें प्रकाशित हैं। इसी क्रम में प्रौढ़ अपभ्रंश रचना सौरभ व अपभ्रंश अभ्यास सौरभ अतिशीघ्र प्रकाश्य हैं। पत्राचार के माध्यम से अखिल भारतीय स्तर पर अपभ्रंश सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम तथा अपभ्रंश डिप्लोमा पाठ्यक्रम विधिवत संचालित हैं। अपभ्रंश में मौलिक लेखन को प्रोत्साहन देने के लिए प्रतिवर्ष 'स्वयंभू पुरस्कार' प्रदान किया जाता है। अपभ्रंश भाषा और साहित्य के प्रचार के लिए 'अपभ्रंश भारती' पत्रिका का प्रकाशन एक समयोचित पहल है। विद्वानों द्वारा अपभ्रंश साहित्य पर की जा रही शोध-खोज को 'अपभ्रंश भारती' के माध्यम से प्रकाशित करना हम अपना कर्तव्य समझते हैं । इस अंक में अपभ्रंश साहित्य के विविध पक्षों पर विद्वान लेखकों ने अपने विचार प्रस्तुत किये हैं। हम उन सभी के प्रति आभारी पत्रिका के सम्पादक, सहयोगी सम्पादक एवं सम्पादक मण्डल धन्यवादाह हैं । इस अंक के मुद्रण के लिए जयपुर प्रिन्टर्स प्राइवेट लिमिटेड, जयपुर धन्यवादाह है। कपूरचन्द पाटनी । मंत्री नरेशकुमार सेठी अध्यक्ष प्रबन्धकारिणी कमेटी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी (v)

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 94