Book Title: Anusandhan 2015 03 SrNo 66
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 16
________________ फेब्रुआरी - २०१५ कल्पित छे. आमां १-११, १-२०, तथा ते पछीनां पद्योमां भिन्न भिन्न छन्दो प्रयोजायां छे. ____ढांकीसाहेबना मत प्रमाणे आ कृतिओ प्रायः अप्रगट छे. तेथी ते यथामति सम्पादित करीने अहीं प्रगट करवामां आवी छे. आ पानां आपवा बदल ढांकी साहेबनो खूब आभारी छु. (१) नेमिनाथ-विनति ॥ हरिषु माइ नही हियडइ किमइ, मझ मनुं गिरिनारि घणउं रमइ । लडहलोचन नेमि नमस्करउं, जिम न चउगइ माहि चली फिरिउं ॥१॥ सहजि सोहगसुंदर सामलु, कुसुमबाणतणइ कुलि आमलउ । सु मई दीठउ ठाकुर आपणउ, नहिअ कोइ मनि भउ छइ पापनउ ॥२॥ करिय कुंडि सनानु गइंदमइ, भरिय भावि भिंगारि सुवर्णमइ । न्हवण नेमिजिणेसरनइ करइ, सिववधू हिव सयंवर मई वरी (रइ) ॥३॥ सघण सूंकडि' कुंकुम केवडी, विकल(च?) चंपक बउलि वि मालती । कुसुममाल विसाल रमावली, करीअ पूज हुई मनि मुं रली ॥४॥ दर न लीलविलास सकइ कला, जिसइं सेव करउं प्रभु सामला । अलजयउ भवभंजन भावना, करिसु हउं नितु नेत्र सुहामणा ॥५॥ तुझ समउ जगि चोर न को हुयउ, भविकनां मन चोरिय नय रिहिउ । कहि किसिंउ करिसिइ कुडि बापुडी, मझ मनउ गिरिनारि रहिउं चडी ॥६।। इकु सु डूंगरडउ रलीआमणउ, अनय तूं जगदीस सुहामणउ । अमृतमइ कुंड नेत्र निहालिय[इं], भवतणां सवि संकट टालियइं ॥७॥ गहगहई गिरि-कंदरि किनरी, रहसिं रासु रमई सुरसुंदरी । सुर करइं नितु नाटक भावना, गुण थुणइं परमेश्वर नेमिना ॥८॥ नर्यनु चंदिन चंद निरइकरइ, मझ मनोहरु सुक्ख न संभरइ । इम किमइ मझ तई तन मोहिउं, तुझ कन्हइ जिम निश्चल हुई रहिउं ॥९॥ १. सुखड । २. नयनरूप चन्द्र वडे चन्द्रने निराकृत-पराभूत करे ।

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