Book Title: Anusandhan 2015 03 SrNo 66
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 149
________________ १४० .. अनुसन्धान-६६ सूचन मळे छे. तदनुसार निश्चयनयना मते क्रियाकाळ-निष्ठाकाळनो अभेद होवाथी, संथारानो जे भाग वर्तमानसमये पथराई रह्यो छे, ते भाग पथराई चूकेलो ज छे. अने संथाराना ते पथराई चूकेला भागमां व्यवहारनयथी आखा संथारानो उपचार करीने ऋजुसूत्रनय(निश्चयनयविशेष)नी अपेक्षाओ 'संथारो पथराई चूक्यो छे' अवो प्रयोग करी ज शकाय छे. निश्चयनयमते अनुपचरित संथारो भले चरम समये ज पथरातो होय, पण व्यवहारनयथी संथाराना अक भागमां संथारानो उपचार करीने तेने निश्चयनयमते अचरम समये पण पथरातो समजी ज शकाय छे. जो के ऋजुसूत्रनयमते उपचार शक्य नथी होतो. तेथी उपचार करवा पूरतुं तेने उपचारमूलक व्यवहारनयर्नु अवलम्बन लेवु पडे छे. पण तेम कर्या पछी क्रियाकाळ-निष्ठाकाळनो अभेद स्वीकारवानी बाबतमां तो ते स्वतन्त्र ज छे. आ ज वातनुं अन्य उदाहरण जोईओ. भगवतीजी - शतक १, उद्देश १, सूत्र ८मां श्री गौतमस्वामीजीओ प्रभु वीरने पूछ्युं छे के "से नूणं भंते! चलमाणे चलिए ?" (हे भगवान! जे (कर्म) चलायमान होय तेने चलित कहेवाय ?)आनो जवाब आपतां प्रभु वीरे निश्चयनयना आश्रये फरमाव्युं छे के "हंता गोयमा! चलमाणे चलिए" (हा गौतम! जे चलायमान होय ते चलित होय छे.) आ पदार्थने स्पष्ट रीते समजावतां टीकाकार श्रीअभयदेवसूरिजी महाराजे जणाव्युं छे के "पटनी उत्पादनप्रक्रियाना प्रारम्भमां प्रथम तन्तुनो प्रवेश थाय ओ साथे ज पट उत्पद्यमान पण बने छे अने उत्पन्न पण बने छे. जो प्रथम तन्तुना प्रवेशसमये पण पट उत्पन्न न थाय, तो मे प्रवेशनी क्रिया तो व्यर्थ बनशे ज, पण पट क्यारेय उत्पन्न न थाय एवी आपत्ति पण आवशे. केम के जो क्रियानी प्रथम क्षणे ए उत्पन्न नथी थतो, तो पछीनी क्षणोओ पण ओ उत्पन्न नहीं ज थाय. केमके प्रथमक्षण अने पछीनी क्षणो वच्चे कोईक तात्त्विक तफावत तो छ ज नहीं. माटे प्रथम तन्तुना प्रवेशकाले ज पट कंईक अंशे उत्पन्न थई ज गयो छे, अने एटलो अंश अन्य क्षणोनी क्रिया द्वारा उत्पन्न नथी ज थतो अम स्वीकारवू पडशे. जो के पटनी आ उत्पत्ति उत्पद्यमानताथी विशिष्ट होय छे, अटले पट लोकव्यवहारमा उत्पन्न नथी गणातो. पण निश्चयनये तो ओ उत्पन्न ज छे. अ ज रीते उदयावलिकाना प्रथम समये कांईक

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