Book Title: Anusandhan 2015 03 SrNo 66
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 171
________________ १६२ . अनुसन्धान-६६ चूलिका"। आनो मतलब अवो समजी शकाय के नाटकना प्रस्तुतीकरण दरम्यान नेपथ्यमां रहेलां पात्रो अर्थसूचन माटे जो पैशाचिक भाषा प्रयोजे तो तेओनी पैशाची भाषामां आवां लक्षणो होय छे. अने ते भाषा 'चूलिका' (-अर्थसूचन)मां प्रयोजायेली होवाथी 'चूलिकापैशाची' तरीके ओळखाय छे. . 'चूलिकापैशाची' अंगेनो आ उल्लेख अक नवी ज विचारणा प्रेरे छे. विद्वज्जनो आ विशे विशद प्रकाश पाडे तेवी नम्र विनन्ति. . .. ४. साधुश्रीपृथ्वीधरकारित-जिनभुवनस्तवनम् विशे. .. अनुसन्धान-५५, पृष्ठ १५-२२मां मन्त्री पेथडशाह कारित जिनमन्दिरो अने ते ते जिनमन्दिरमा प्रतिष्ठित मूळनायकोनुं वर्णन करतुं स्तवन प्रकाशित - थयुं छे. (सं. - पू.आ. श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी म.) आ स्तवननी सम्पादकीय भूमिकामां आ स्तवन अज्ञातकर्तृक होवानो निर्देश थयो छे. सम्पादन माटे उपयोगमा लेवायेली प्रतमां पुष्पिका के अन्य कोई निर्देश न होवाथी स्तवन कया समये रचायुं हशे ते पण अनिर्णीत रह्यं छे. . - परन्तु ताजेतरमा श्रीमुनिसुन्दरसूरिविरचित गुर्वावली (प्र. यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी, वीर नि.सं. २४३७) तपासतां आ स्तवन तेमां जोवा मळ्युं. आ स्तवन त्यां श्रीमुनिसुन्दरसूरिजी द्वारा उद्धृत थयुं छे. स्तवनना ... रचयिता तपगच्छपति श्रीसोमतिलकसूरिजी (श्रीजगच्चन्द्रसूरिजी - श्रीदेवेन्द्रसूरिजी .. - श्रीधर्मघोषसूरिजी - श्रीसोमप्रभसूरिजी - श्रीसोमतिलकसूरिजी) छे. जेओ पृथ्वीधर (-पेथडशा) मन्त्रीना प्रतिबोधक श्रीधर्मघोषसूरिजीना प्रशिष्य छे. तेमनो सत्तासमय वि.सं. १३५५-१४२४ छे. तेथी आ स्तवन १४मी सदीना अन्ते के १५मी सदीना प्रारम्भे रचायुं होय तेम मानी शकाय. स्तवननी बन्ने वाचना सरखावतां अनुसन्धानगत वाचनामां केटलाक सुधारा जणाय छे :

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