Book Title: Anusandhan 2015 03 SrNo 66
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 169
________________ १६० अनुसन्धान-६६ - आचार्य वज्रभूतिनी काव्यशक्ति अजब हती. तेमनां काव्यो गुजरातभरमां प्रसिद्ध थयां हतां, अटलुं ज नहीं, राजाओना अन्तेपुरनी राणीओ पण तेमनां काव्यो रसपूर्वक गाती हती. भरूचना राजा नभोवाहननी राणी पद्मावतीने आवा महाकवि आचार्यनां दर्शन करवानी होंश जागवाथी, ते भेटणुं लईने दासी साथे आचार्यनी वसतिमां गई. ___ आचार्य पोते कर्मयोगे कदरूपा, दूबळा अने शिष्यपरिवारथी रहित हता. तेमनो देखाव प्रभाव वगरनो हतो, तेथी राणीओ तेमने ओळख्या पण नहीं.. ' अने ज्यारे दासीना कहेवाथी तेने ओळखाण पडी त्यारे ते पोतांनो अभिप्राय साङ्केतिक रीते जणावतां बोली के - “दिट्ठा सि कसेरुमई०" (हे कसेरुमती नदी! तने जोई पण खरी अने तारुं पाणी पण पीधुं. तारुं पाणी ज सारुं छे, पण तारुं दर्शन सारुं नथी.) कसेरुमती नदी भरुचनी आजुबाजु क्यांक हशे, जेनुं पाणी मीठं : हशे, पण देखाव सारो नहीं होय. अनी जेम वज्रभूति आचार्यनां काव्यो सारां छे, पण दर्शन सारूं नथी अम आ अन्योक्तिनो भाव छे. दूरथी डुंगरा रळियामणा! - एनी जेम. ___ आचाराङ्गटीकामां आ गाथा गोचरचर्या सन्दर्भ उद्धृत छे, के साधु कोई महाधनवान गणाता गृहस्थने त्यां भिक्षार्थे जाय अने तेवा गृहस्थने त्यां पण कोईक कारणसर आहार-पाणी न मळे, तो पण ते साधु गृहस्थने निन्दे नहीं, मतलब के ओ गृहस्थने स्पष्ट के अस्पष्ट भाषामां उपालम्भ न आपे. जेमके - ते साधु गृहस्थने अम न कहे के - "दिट्ठा सि कसेरुमई०", आ गाथाथी व्यक्त थतो उपालम्भ स्पष्ट ज छे के भाई! तारुं नाम तो घणुं सारुं छे, पण घरे आवीने जोईओ तो खबर पडे के नाम ज सारुं छे, काम नहीं. अने आवो उपालम्भ न आपवानी शीखामण आचाराङ्गटीकामां आपवामां आवी छे. दशवैकालिकसूत्र - गाथा ५.१.२४नी अगस्त्यसिंहसूरि कृत चूर्णिमां पण प्रस्तुत सन्दर्भे आ ज गाथानो निर्देश छे.. ढूंकमां, 'कसेरुमई'नी छाया 'उदारमति' नहीं, पण 'कसेरुमती' ज थशे, केमके ते विशेष नाम छे.

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