Book Title: Anusandhan 2015 03 SrNo 66
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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___ अनुसन्धान-६६
शके - 'शिवमां मां वशिनं नय वि-भव !'. पृ. १७, पं. ५- तत्तत्तथा कुरु कुबोध०, पं. ६मां ०ऽखिलधामधाम[न्], पं. ११मां दिद्विषतो हि..... आटलो पाठ कल्पी शकाय छे, आगळनो पाठ खण्डित छे. पृ. १८, पं. नीचेथी ६ - ०योगाद्दधता. पृ. १९, पं. ५ - शमं. पृ. १९, पं. १६ - नय स्फुरद्०. पृ. २३, पं. १० - त्वं येतिषे. पं. १२ - ज्ञान ! पं. २८ - परध्येये. पृ. २५, पं. नीचेथी ३ - गतामय !. आवी पाठशुद्धि वाचन करतां सूझी छे.
क्र. २ वाळो वि.प. अत्यन्त अशुद्ध छे, परन्तु रचयितानी विद्वत्ता तो प्रतिबिम्बित थाय छे ज. क्र. ३- वि.प. विशिष्ट छे. प्रत्येक श्लोकनो पूर्वार्ध प्राकृतमां अने उत्तरार्ध संस्कृतमां छे. रचयिता छे उपा. विनयविजयजी महाराज. प्रखर प्रतिभाना स्वामी उपाध्यायजी आवा पत्रमा कोइक नवो उन्मेष दाखव्या विना केम रहे ?
'आनन्दविज्ञप्ति' नामक वि.प. (क्र. ४) वि.पत्रो लखनारने उपयोगी थवा लखायो होय एवं लागे छे. अथवा कविए लखवा धारेला वि.प.नो खरडो पण होई शके. श्लोक ५० नो उत्तरार्ध 'इति वा' करीने बीजी वार लख्यो छे. श्लो. १५ (५२)मां उत्तरार्धमां पण 'श्रमणा' शब्द छे त्यां'श्रमण्यः' होवू घटे, कारण के त्यां 'सर्वा' एवं स्त्रीलिङ्गी विशेषण पण छे ज. श्लो. १७ (५४)मां 'प्रसद्यं प्रसाद्य मे'ना स्थाने 'प्रसद्य प्रसाद्यं मे' एवो पाठ होवानी शक्यता छे.
वि.प्र. क्र. ५ नानो होवा छतां प्रगल्भ पाण्डित्यनो परिचय आपी जाय छे. क्र. ६वाळो वि.प. प्रौढ पाण्डित्य अने स-रस काव्यतत्त्वथी मनोहर बन्यो छे. क्र. ५ वाळो पत्र, हकीकतमां वि.प.ना उत्तररूपे गच्छपति द्वारा लखायेल प्रसादपत्र छे.
७मा क्र. नो पत्र, तेना सम्पादको कहे छे तेम, वि.प. लखनारने उपयोगी अंशो रूपे लखायो छे. कवित्व ध्यानाकर्षक छे. 'गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः' ए जाणीता श्लोकनो विस्तार को होय एवा गुरुस्तुतिना ५-६ श्लोक आमां छे के जे स्तुति रूपे प्रचलित थई शके. कविए आमां गुरुनी काया सांगोपांग वर्णन करवानी नवीनता दाखवी छे - जे अघरं होवा छतां कविए कुशळताथी

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