Book Title: Anusandhan 2015 03 SrNo 66
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 148
________________ फेब्रुआरी - २०१५ १३९ ऋजुसूत्रनय (निश्चयनय) ना मते साडीना ओक भागमां आखी साडीनो उपचार करीने ज शक्य बने छे. ओटले ज्यारे आवो उपचार न होय त्यारे 'बळी रहेली साडी बळी गई छे' आवा वचनमां ऋजुसूत्रनी संमति न होवाथी व्यवहारनयनी संमति ज मानवानी रहे छे. अथवा संथारो लगभग पथराई गयो होय त्यारे पण संस्तीर्णत्वनो व्यवहार थवामां, ते ज काळे संथारानो जे अक देश संस्तीर्यमाण होय, अने ज संस्तीर्ण जणाववानो अभिप्राय होतो नथी. कारण के 'आवो अने सूओ' आवो अभिप्राय अमां संगत थई शकतो नथी... आखो संथारो पथराई गयो होवानुं जणाववानो अभिप्राय ज अमां होय छे, ओ माटे उपचार आवश्यक बनी रहे छे. जे उपचारबहुल व्यवहारनयने ज संमत होवाथी आवा 'क्रियमाणं कृतं' प्रयोगमां व्यवहारनयनी संमति मानवी ज पडे छे. * * 'कज्जमाणे कडे' से वात दीर्घकालीन क्रियाने अपेक्षीने व्यवहारनये सम्मत बनी शके छे से अंगे उपर रजू थयेली दलीलो थोडोक विचार मांगी ले तेवी जणांय छे जेटला अंशे संथारो पथराई चूक्यो होय अटला अंशमां आखा संथारानो उपचार करवो व्यवहारनयना मते अवश्य शक्य छे. पण ओवो उपचार कर्या पछी पण 'संथारानो ओक भाग पथराई रह्यो छे' ओवा वाक्यप्रयोगने बदले 'संथारो पथराई रह्यो छे' ओवो ज वाक्यप्रयोग ते करी शकशे. 'संथारो पथराई गयो छे' आवो वाक्यप्रयोग, संथारो पथराई रह्यो होय ओवा काळे करवो, ते अकला व्यवहारनयमते शक्य ज नथी बनतो. केमके नथी ते क्रियाकाळनिष्ठाकाळनो अभेद स्वीकारतो के नथी ते वर्तमानत्व - अतीतत्वनो अक ज जग्याअ अन्वय स्वीकारतो. स्वयं ते महानुभावे पण व्यवहारनयमते क्रियाकाळनिष्ठाकाळनो अभेद के वर्तमानत्व - अतीतत्वनो अविरोध सिद्ध नथी कर्यो. ते वगर तो 'कज्जमाणे कडे' मां व्यवहारनयनी संमति प्रमाणभूत कई रीते गणी शकाय ? ३. - * जमालिना शिष्यना जवाबनी संगति निश्चयनयमते कई रीते थई शके ते अंगे आपणने विशेषावश्यक महाभाष्य - गाथा २३३०नी मलधारीय टीकामां

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