Book Title: Anusandhan 2015 03 SrNo 66
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 158
________________ फेब्रुआरी- २०१५ सूत्र ३.४१ अम्मो भणामि भणिए अयि दीहराई सुण्हे सीसे दीसंति पत्ताई । अम्मो भणामि भणिए तुम्हाण वि पंडरा पिठ्ठी ॥ ( अयि दीर्घाणि स्नुषे! शीर्षे दृश्यन्ते पत्राणि । अम्ब! भणामि भणिते युष्माकमपि पाण्डुरं पृष्ठम् ॥) सूत्र ३.७३ इमिआ वाणिअधूआ इमिआ वाणिअधूआ मज्झ कए मुक्कजीविओ य सोमित्ती । निष्फलवूढभुयभरो नवर मए चेय लहुईकओ || (इमा वाणिजदुहिता मम कृते मुक्तजीवितश्च सौमित्रिः । निष्फलव्यूढभुजभरः केवलं मया चैव लघूकृतः ॥) सूत्र ३.८७ ताओ एआओ महिलाओ १४९ ताओ आओ महिलाओ माणुन्नय (यं) देइ मं अवमाणं । अणुसरिसं ति भणंती आहंतूण पडियथिरत्तणुच्छंगं ॥ (ता एता महिला मानोन्नतं ददति मामपमानम् । अनुसदृशमिति भणन्त्यः आहत्वा पतितस्थिरत्वोत्सङ्गम् (?) II) सूत्र ३.८७ अह णे हिअएण हसइ मारुयतणओ संखोहिअमयरहरो संभंतुव्वत्तदिट्ठरक्खसो लोओ । वेलायडमुज्झतो अह णे हियएण हसइ मारुयतणओ | (संक्षोभितमकरधरः सम्भ्रान्तोद्वृत्तदृष्टराक्षसो लोकः । वेलातटमुज्झन् असावस्मान् हृदयेन हसति मारुततनयः ॥) -x

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