Book Title: Anusandhan 2015 03 SrNo 66
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 124
________________ फेब्रुआरी - २०१५ दशम व्रत विवरण जाणवुं ॥ अथ एकादशमः । अथ एकादशमः व्रत प्रारंभ्य [ते] इग्यारमो पोषधोपवास शिक्षाव्रतें वर्षमध्ये पोषह १ अहोरत्तो करवो । न थाय तो दिवसना २ पोषध पुहचाडवा । शेष करवानो खप करूं, कारण जयणा । 1 ११५ इक्यारमां व्रतना पांच अतिचार टालवानो खप करु. १ संथारानी भूमिका जोइ नहि. २ उच्चार ते लघुनीति - वडीनीतिनी भूमिका जोइ नहि. ३ तथा पूंजी नहि. ४ तथा पडिलेही नहि. ५ तथा भोजननी चिंता कीधी, ए पांच अतिचार वर्जवानो खप करु | अतिचार जाणुं, पिण आदरु नहि इति एकादशम: व्रतः ॥ अथ द्वादशमव्रत लिख्यते - बारमे अतिथि- संविभाग शिक्षाव्रतरं वरस प्रतें १ अतिथिसंविभाग करवा । साधुसाध्वीनो योग न मिले तो सुधर्मी श्रावक तथा श्राविकानी भक्ति करुं । बारमा व्रतना ५ अंतिचार जाणुं पिण आदरु नहि । १ महात्मा आव्यै संचित्त वस्तु ढांकी २ पीयारी (पराई) वस्तु कीधी ३ सचित्त वस्तु उपर मूंकी ४ मत्सर धरी दान दीधुं ५ काल अतिक्रमावीने यतिने वहोरवा तेड्यां । ए. पांच अतिचार बारमा व्रतनां टालवानो खप करूं । इति द्वादशमव्रतं संपूर्णं ॥ : श्रीरस्तु ॥ श्री ॥ इति द्वादशव्रत समाप्तं पफाण ( ? ) तथा एणि विधि श्री सम्यक्त्वमूल बार व्रत सुधां पालवा । दिवसनां नियम विसरे तो बीजें दिवसै करवा । मासना नियम विसरे तो बिजें मासें करि पहुचाडुं । वरसना नियम विसरे तो बीजें वरसें करि पुहचाडुं । ए नियम लीधा विसरे तो दिन २ नीलवण न खावी । ए टीप वरस १ मध्ये एकवार वांचवी तथा वचाववी । तथा जो प्रमाद वस्यै वरसमां १ वार ए टीप न वांची, न वंचावी [तो.] जिवारे सांभरे तिवारे दिन १ नीलवण न खावी । तथा बारव्रतमां जे जे परिमाण लख्यां चैं ते प्रमाणें यथाशक्ति करी पालुं । दुका राज देवकें तथा शरीरने अस्वास्थ्यपणें जयणा । एहमां वस्तुनुं परिमाण राख्युं छै ते माहेथी पिण संखेपवानो खप करु । जिनाज्ञायें तहत्ति करु | ‘“तमेव सच्वं निशंकं जं जिणेहिं पवेइयं " ए मार्गनी श्रद्धा राखुं । बीजो मार्ग घटमां न रचावुं । ए टीप प्रमाण जाणता अजाणता किस्योइ दोष लागे ते मन वचन कायाए करी मिच्छामिदुक्कडम् इत्यादि ॥ श्री ॥

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