Book Title: Anusandhan 2015 03 SrNo 66
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 90
________________ फेब्रुआरी - 2015 जिनप्रासाद उत्तंग मनोहर, उपद्रव नहीं लवलेस, भव्य प्राणी बहु धरम करंता, एहवो छि आ देस. 9 जेसंगजी..... शी(सी)ता मनि जिम राम ज वसिओ, गौतम मनि महावीर, तिम तुं मोरा चित्तमां वसिओ, सुंदर साहसधीर. 10 जेसंगजी..... वसंत आवई जिम कोयल हरखइ, चंद देखी रे चकोर, तिम तुं जलधर अहिआं आवई, हरखइ भविजन-मोर. 11 जेसंगजी..... रवि ऊदई जिम पंकज विकसइ, चक्रवाकी हरख न माय, तिम तुझ दीठि मुझ मन विसइ, जोतां त्रिपति न थाय. 12 जेसंगजी..... चातुक जिम घनाघन समरइ, सती समरइ भरतार, तिम हुं तोरा गुणगण समरी, सफल करुं अवतार. 13 जेसंगजी..... शशी दीठि जिउं जलनिधि उलसइ, मेहि वन उलसंति, तुझ देखि मुझ मानस उलसइ, वसिओ मोरइ चित्त. 14 जेसंगजी..... मलयाचल जिम चंदनई भरिओ, रोहणगिरि मणिधाम, तिम तुं निरमल गुणे करि भरिओ, सुखकरु ताहरुं नाम. 15 जेसंगजी.... मनोहर मधूई काम दीपाव्यो, समुद्र दीपावन चंद, तिम ति हीरजीपाट दीपाव्यो, मोहनवल्लीकंद. 16 जेसंगजी..... कंसविदारण विष्णु विख्यातो, अहनिसि अकल अबीह, तिम तुं सूरी(रि)शिरोमणि जाणुं, मदनविदारण सीह. 17 जेसंगजी..... हृदयभूषण नवसर हार, सिरभूषण अवतंस, करभूषण बाजुबंध रंगीला, तुं भूषण उसवंस. 18 जेसंगजी..... चोलमजि(जी)ठनओ रंग ज रातो, रवि रातो परभाति, चरणकमल हुं तोरइ रातो, जसी पटोलइरे भाति. 19 जेसंगजी..... मोरइ मनि तुं सहगुरु वसीओ, अवर ना नामुं सीस, तुझ दीठिं दुःख दूरि जाइ, पोचइ मनह जगीस. 20 जेसंगजी...... अक्षर बावन गुण रे अनेक, लखतां नावइ पार, तोरा गुण तो वर्णवि न सकइ, जीहां होइ हजार. 21 जेसंगजी..... मति अनुसारइं मइ सुभ वारई, लेख ज लखीओ एह, वी(वि)स्तारीनइं वांची जोयो, धरयो धरम सनेह. 22 जेसंगजी.....

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