Book Title: Anusandhan 2006 09 SrNo 37
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 6
________________ श्री जयसिंहसूरिकृत पञ्चकपरिहाणि तथा आलोचनाविधान सं. विजयशीलचन्द्रसूरि खम्भातना श्रीशान्तिनाथ प्राचीन जैन ताडपत्रीय भण्डारनी, क्र. १०३ नी प्रति, सूचिपत्रोमां ‘पञ्चकपरिहाणि आदि' एवा नामे उल्लेखाई छे. पत्रसंख्या १८१ छे. जीतकल्प आदि सूत्रग्रन्थो तेमां आलेखाया छे. तेमां आ बे रचनाओ पण छे. प्रथम रचना 'पञ्चकपरिहाणि' ए प्रायश्चित्तनो विधि वर्णवती रचना छे. कोने, कया दोष बदल, क्यारे, कोणे, केवु प्रायश्चित आप, तेनुं संक्षेपमा पण सुस्पष्ट वर्णन एमां थयुं छे. प्रकरणनी बीजी गाथामां आने ‘पञ्चक परिहाणि प्रकरण' ए नामे ओळखावेल छे, अने छेवटनी पुष्पिकामां पण. गा० २ अनुसार 'आ प्रकरणने बराबर समजनार मुनि 'गीतार्थ मुनि' बने छे. प्रकरण ६१ गाथा- छे. प्रतिना १ थी १४/१ एटलां पृष्ठोमां ते लखायेलुं छे. कर्ता- नाम, ६१मी गाथा प्रमाणे 'जयसिंहसूरि-गणपति' (गच्छपति आचार्य जयसिंहसूरि) छे. पुष्पिकामां पण ते ज नाम छे. कया गच्छना आ आचार्य हशे, तथा तेमनो समय कयो होय, ते जाणवायूँ कोई साधन नथी. वडगच्छ, मलधारगच्छ, कृष्णर्षिगच्छ, अंचलगच्छ-एम विविध गच्छोमां ११मा१२मा-१३मा शतकोमां आ नामना आचार्य थया- इतिहास नोंधे छे, जेमां केटलाक गच्छपति पण हता. पण ते पैकी कया आचार्यनी आ रचना छे, ते जाणवानुं मुश्केल छे. 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास'मां आ रचनानुं ज नाम नथी ! आम छतां, तेओनो सत्तासमय १२मो के १३ मो सैको हशे तेम मानी शकाय. बीजं प्रकरण 'आलोयणाविहाण' नामनुं छे. ते पण ते ज प्रतिमां ४०/२ थी ४७/१ एटलां पत्रोमां छे, अने ३५ गाथा प्रमाण छे. ए पण पञ्चकपरिहाणिना कर्तानी ज रचना होवानुं वधु सम्भवित जणाय छे. केमके पञ्चकपरिहाणि पूरुं थया बाद 'प्रायश्चित्तो'- वर्णन प्राकृत ने अपभ्रंश आदि मिश्र भाषामां छे. वच्चे वच्चे थोडी गाथाओ पण आवे छे. ते बधुं १४/ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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