Book Title: Anusandhan 2003 12 SrNo 26
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ आचार्य श्रीविजयनेमिसूरिरचित 'रघुवंश' टीकानी __ परिचयात्मक भूमिका विजयशीलचन्द्रसूरि आचार्य श्रीविजयनेमिसूरिजी महाराज ए वीसमी शताब्दीना एक प्रभावक जैनाचार्य हता. तेमणे जैन तर्क तेम ज हैम व्याकरण साथे संबन्ध धरावता घणा ग्रन्थो तथा टीकाग्रन्थोनी रचना करी छे, जे महदंशे मुद्रित छे. तेमनी एक अप्रकाशित तेमज अपूर्ण रचना ते महाकवि कालिदासना 'रघुवंश महाकाव्य'ना द्वितीय सर्गनी टीका छे. फक्त ३० श्लोको उपरज रचायेली आ अधूरी टीका पण एटली तो विशद, विस्तृत, मर्मग्राही अने अर्थोद्धाटक छे के सहृदय भावकना हृदयमां, आनुं पठन-अध्ययन, एक विलक्षण बोधानन्द जन्मावी गया विना रहेतुं नथी. पंचकाव्यो- अध्ययन करवानी प्रणालिका, ए संस्कृत भाषा-साहित्यना अध्येताओनी सदीओ जूनी मान्य-सामान्य प्रणालिका रही छे. जैन मुनिसमुदाये पण आ प्रणालिकाने अत्यार सुधी अपनावी तथा जाळवी राखी हती. रघुवंश, कुमारसम्भव, किरातार्जुनीय, शिशुपालवध अने नैषधीयचरित- आ बधां काव्यो भणवां-वांचवां ए पण एक रसानुभव छे. व्याकरण भण्या बाद अने तर्कग्रन्थोमां प्रवेशवा पूर्वे आ काव्यग्रन्थोनुं अध्ययन, व्युत्पत्ति माटे तथा संस्कृतना महासागरमां अवगाहन करवा माटे, अनिवार्य मनातुं. दुर्भाग्ये, आजनो, संकुचित धार्मिक मानस धरावतो साधुगण आ काव्योना अध्ययनथी विमुख बनी रह्यो छे; जेनुं परिणाम तेनी, संस्कृतज्ञ छतां अर्धदग्ध ज रही जती व्युत्पन्नताना स्वरूपे सतत जोवा मळे छे. 'रघुवंश' उपर एकाधिक जैन मुनिओए टीकाग्रन्थ रच्या छे, जे अद्यावधि अप्रकाशित छे. कोई रसिक अभ्यासी जन, ज्ञानभण्डारोमां सचवायेली आ टीकाग्रन्थोनी पोथीओने उकेले, सम्पादन करे, तो जैन टीकाकारोना संस्कृत साहित्य प्रत्येना मातबर योगदाननो विद्वानोने अंदाज अवश्य मळे अने साथे ज, आ काव्यना जैन साधुओए साचवेला-स्वीकारेला शुद्धतर 'पाठ' पण सांपडे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 142