Book Title: Anekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 5
________________ अनेकान्त 63/1, जनवरी-मार्च 2010 5 सम्पादकीय जैन दर्शन का उच्च प्रासाद 'अनेकान्तवाद' की भूमिका पर आधृत है। स्याद्वादमंजरी के अनसार वस्तु में विविध धर्मों की स्वीकृति ही अनेकान्तवाद है, और अनेकान्त के इस सिद्धांत को कथनों के रूप में प्रकट करना ही स्याद्वाद है। सुप्रसिद्ध आधुनिक चिन्तक प्रो. प्रभुदयाल अग्निहोत्री ने लिखा है कि 'अनेकान्तवाद के तत्त्व को न समझ पाने के कारण ही बड़े-बड़े वितण्डावाद होते है। हमारे देश में राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक अन्धता इस तत्व को न समझ पाने के कारण उत्पन्न हुई है। .....समस्याओं को सुलझाने के लिए यह रामबाण औषधि है। (स्याद्वाद का व्यावहारिक पक्ष लेख) आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने भगवान् महावीर द्वारा प्रतिपादित तीर्थ की स्तुति करते हुए उसे सर्वोदय तीर्थ कहा है। उनकी दृष्टि में अनेकान्त' वस्तु में अनेक धर्मात्मक स्वरूप का साध क है, किन्तु दृष्टि निरपेक्ष हो जाने पर वही वस्तु, सर्वधर्मरहित शून्यता की प्रापक बन जाती है। यतः अनेक धर्मात्मक वस्तु की सिद्धि सापेक्ष दृष्टि से ही होती है, अतः अनेकान्तवाद सभी आपत्तियों का विनाशक स्वयं अन्तहीन (अविनाशी) सर्वोदय- प्राणीमात्र का हितकारी तीर्थ है 'सर्वान्तवत्तद्गुणमुख्यकल्पं सर्वान्तशून्यं च मिथोऽनपेक्षम्। सर्वापदामन्तकरं निरन्तं सर्वोदय तीर्थमिदं तवैव।।' - युक्त्यनुशासन,61. जैन दर्शन शोध संस्था वीर सेवा मंदिर दरियागंज नई दिल्ली के पदाधिकारियों की यह भावना रही कि अनेकान्त और महावीर के सर्वोदय तीर्थ का जन-जन में प्रचार-प्रसार हो, ताकि समस्त विश्व में शान्ति स्थापित हो तथा "वसुधैव कुटुम्बकम्' के रूप में भारतीय संस्कृति की पुनः प्रतिष्ठापना हो। इसी पवित्र भावना को ध्यान में रखकर संस्थान में प्रतिवर्ष वीर सेवा मंदिर के संस्थापक वाड्.मयाचार्य पं. जुगलकिशोर मुख्तार की स्मृति में एक व्याख्यानमाला का आयोजन होता है। इस बार 27 दिसम्बर, 2009 को, सुप्रसिद्ध गाँधीवादी चिन्तक, पूर्व सांसद एवं पूर्व कुलपति जैन विश्व भारती, लाडनूं तथा सर्वोदय सिद्धांत के प्रचारक प्रो. रामजी सिंह भागलपुर और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में जैन-बौद्ध दर्शन विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ. कमलेश कुमार जैन को व्याख्यानमाला में व्याख्यान के लिए तथा अनेक विद्वानों को चर्चा के लिए आमांत्रित किया गया था। इस अंक में प्रकाशित प्रो. रामजी सिंह के दो आलेख तथा प्रो. कमलेश कुमार जैन का आलेख उनके व्याख्यानों का लिपिबद्ध रूप है। हमें विश्वास है कि पाठक उनके विचारों से अवश्य लाभान्वित होंगे। इस अंक में सम्यक् श्रद्धान, सम्यक्ज्ञान एवं सम्यक् चारित्र में साधनभूत तथा प्रासंगिक लोकोपकारी अनेक अन्य आलेखों को भी समादिष्ट किया गया है। हमारा प्रयास है कि 'अनेकान्त' के अंक उत्तरोत्तर महत्तर बनें। इस निमित्त हम सुधी लेखकों की अपेक्षा के भी आकांक्षी है। हमें विश्वास है कि सुधी पाठक हमें अपने विचारों से अवगत कराते रहेंगे ताकि 'अनेकान्त' को हम और बेहतर बना सकें। -जयकुमार जैन

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