Book Title: Anekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ अनेकान्त-57/1-2 सर्वस्व त्याग भी करना पड़े तो भी हम आपके साथ हैं। देव, शास्त्र के पश्चात् गुरु हमारे वन्दनीय हैं। उनसे विनम्र प्रार्थना है कि वे शास्त्रविरुद्ध कृत्यों को करने की समाज को सहमति प्रदान न करें, जहाँ तक संभव हो उन्हें विहित कर्मों की जानकारी भी दें। शास्त्रविरुद्ध कृत्यों को करने की प्रेरणा तो हमारे निर्ग्रन्थ गुरु दे ही नहीं सकते हैं। अन्यथा उनकी गुरुता ही संदिग्ध हो जायेगी। अनुकरण सर्वथा त्याज्य नही होता है, पर धर्म से भटककर अनुकरण के आधार पर अधार्मिक परम्पराओं को जैन धर्म में समावेश करने से श्रावक समाज को बचना चाहिए। श्री आदिकुमार की बारात निकालने का औचित्य मुझ अल्पबुद्धि की समझ से परे है, भले ही यह दिन के उजाले में ही क्यों न निकाली गई होती। अन्त में, अनेकान्त के माध्यम से मैं डॉ. रतनचन्द्र जैन को हार्दिक बधाई देता हूँ कि वे आगमविरुद्ध कार्यो के विरोध में लिखते रहें, विद्वानों के प्रेरणास्रोत बनें, उनका नेतृत्व करें तथा उन्हें मार्गदर्शन दें। आप धर्म की रक्षा करें धर्म आपकी रक्षा करेगा। -डॉ. जय कुमार जैन जानो दिल कौम पै अपना जो फिदा करते हैं। कहीं रुसवाई से वे लोग डरा करते हैं? कौमेर्दा में किसी तरह से जाँ पड़ जाए। हम शबोरोज इसी धुन में रहा करते हैं।। - मंगतराय

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 268