Book Title: Anekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04 Author(s): Jaikumar Jain Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 5
________________ सम्पादकीय मार्च 2004 के “जिनभाषित" मासिक में डॉ. रतनचन्द्र जैन का सम्पादकीय 'नाटक का अनाट्यशास्त्रीय प्रयोग' प्रकाशित हुआ था। उसमें जैन धर्म, दर्शन एवं आगम के सुप्रसिद्ध वेत्ता देव-शास्त्र-गुरु के संरक्षण में सतत सावधान संस्था अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्रि-परिषद् के वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉ. साहब ने श्री आदिकुमार जी की बारात को रात्रि में निकाले जाने तथा रात्रि में ही विवाह विधि सम्पन्न कराये जाने को आगम-विरुद्ध लिखा था। डॉ. साहब का यह सम्पादकीय पूर्ण रूप से आगमसम्मत तथा समाज को दिशानिर्देश करने वाला तो था ही, निष्पक्षता एवं तथ्यात्मक प्रस्तुति के कारण प्रशंसनीय एवं अभिनन्दनीय भी था। शिथिलाचारी नग्नवेशधारी अमुनि के प्रसंग में उनके द्वारा दिया गया व्यभिचारिणी स्त्री का दृष्टान्त सर्वथा सटीक एवं प्रासंगिक भी था। ___ भोपाल की तथाकथित धर्मरक्षक गुरुभक्त समाज के कतिपय ठेकेदारों को यह सम्पादकीय नहीं सुहाया, क्योंकि वे उस आगमविरुद्ध कृत्य के आयोजकों में थे अथवा उसमें उनकी सहभगिता थी। उन्होंने भोपाल के अपनी पहुँच वाले साधर्मी बन्धुओं को अधूरा (कुछ अंश छिपाकर) लेख पढ़ाया तथा उसके विरुद्ध वातावरण बनाकर डॉ. रतनचन्द्र जैन के विरुद्ध 06 अप्रैल 2004 को टी. टी. नगर भोपाल के दिगम्बर जैन मन्दिर में आयोजित एक मुनिराज की धर्मसभा को गर्दा सभा में परिवर्तित कर दिया। तथाकथित मुनिभक्तों के ठेकेदारों ने उस सभा में एक सच्चे मुनिभक्त सम्पादक को जिस गाली-गलौज की भाषा में उनकी अनुपस्थिति में लांछित किया, वह सम्पूर्ण विद्वत्समाज के लिए अत्यन्त शर्मनाक बात है। मैं उन तथाकथित मुनिभक्तों के लिए सद्बुद्धि प्राप्ति हेतु कामना करता हूँ तथा डॉ. रतनचन्द्र जी जैन से प्रार्थना करता हूँ कि ऐसे आतंकवाद से वे विचलित न हों। आगम की रक्षा हेतु लेखन में यदिPage Navigation
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