Book Title: Anekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 10
________________ किरण १] अनेकान्त-रस-लहरी गमानन्दको सबसे अधिक निकृष्ट, नीचे दरजेका और न समान फलके अभोक्ता होनेसे ही उन्हें तथा अधम दानी ममझना चाहिये। बड़ा-छोटा कहा जा सकता है। इस दृष्टिमे उक्त अध्यापक-शाबास ! मालूम होता दस-दम हजारके चारों दानियोंमेंसे किसीके बड़े और छोटेके तत्त्वको बहुत कुछ समझ गये हो। विषयम भा यह कहना महज नहीं है कि उनमें हॉ, इतना और बतलाओ कि जिन चार दानियोंको कौन बड़ा और कौन छोटा दानी है। चारोंके अलगनमने पाँच-पाँच लाखके दानियोंम बडे दानी बत- अलग दानका विषय बहुत उपयोगी है और उन लाया है वे क्या दम-दस हजारकी समान रकम मवका अपने अपने दान-विपयमें पूरी दिलचस्पी के दानसे परस्परमे ममानदानी है. समान पाई जाती है।' फलके भोक्ता होंगे और उनमें कोई परस्परमें बड़ा- अध्यापक वीरभद्रजीकी व्याख्या चल ही रही छोटा दानी नहीं है ? थी, कि इतनम घटा बज गया और वे यह कहते विद्यार्थी उत्तरकी खोजमें मन-ही-मन कुछ हुए उठ ग्य हा कि 'दान और दानीके बड़े-छोटेमोचन लगा, इननम अव्यापकजी बोल उठं- पनक विषयमें आज बहुत कुछ विवेचन दमरी 'इममे अधिक मोचनकी बात नहीं, इतना तो स्पष्ट कक्षाम किया जा चुका है। उम तुम मोहनलाल ही है कि जब अधिक दव्य दानी भी अल्प दव्य- विद्यार्थीम मलूम कर लेना, उसमे रही-मही कचाई के दानीम छोटे होजाते है और दानद्रव्यकी संख्या- दृर हा कर तुम्हाग इम विपयका ज्ञान और भी पर ही दान तथा दानाका वडा-छोटापन निभर पारपुष्ट हा जायगा और तुम एकान्ताऽभिनेवेशके नहीं है नब ममान द्रव्यक दानी परम्परमं म्मान चक्करम न पड़ मकोगे ।' अध्यापकजीको उठते और एक ही दर्जेक होगमा कोई नियम नही हो देवका मव विद्यार्थी बड़े हो गये और बड़े विनीतमकना-ममान भी हो सकता है और असमान भी। भावन कहन लगे कि 'आज आपने हमाग बहत इस तरह उनम भी बड़-छांटेका भेद मंभव है और बड़ा अज्ञानभाव दूर किया है। अभी तक हम बडे वह भंद तभी स्पष्ट हो सकता है जबकि मारी परि- छाटक तत्वको पूरी तरहमे नहीं ममझे थे. स्थिति मामन हो अथात् यह पूरी तौरमं मालूम हो लाइनोंद्वारा-सूत्ररूपमे ही कुछ थोड़ा-मा जान पाये कि दानके ममय दातारकी कौटुम्बिक तथा थे, अब आपन व्यवहारशास्त्रको सामने रखकर हम उसके ठीक मार्गपर लगाया है, जिससे अनेक भूलें आथिक आदि स्थिति कैमी थी, किन भावोंकी दूर होंगी और कितनी ही उलझने मुलझंगी। इस भारी प्रणाम दान किया गया है, किस उद्देश्यको लेकर उपकारके लिये हम आपका आभार किन शब्दांमें तथा किम विधि-व्यवस्थाके माथ दिया गया है औ व्यक्त करें वह कुछ भी समझमें नहीं आता। हम जिन्हे लक्ष्य करके दिया गया है वे मब पात्र है, कुपात्र है या अपात्र अथवा उस दानकी कितनी आपक आग मदा नतमस्तक रहेंगे। उपयोगिता है। इन सबकी तर-तमतापर ही दान वोरमेवामन्दिर कैम्प, । तथा उसके फलकी तर-तमता निर्भर है और देहली उमीके आधार पर किसी प्रशस्त दानका प्रशस्ततर ता० १५-६-१६४६ । या प्रशस्ततम अथवा छोटा-बड़ा कहा जा सकता है। जिनके दानोंका विषय ही एक-दूसरसे भिन्न होता देखो, लेख नं.३ 'बडा दानी कौन' 'अनेकान्त वर्ष है उनके दानी प्रायः समान फलके भोक्ता नहीं होते ६, कि० ४ । | जुगलकिशोर मुख्तार

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