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বিস্মৃতি
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तमा संघवी, न्यायतीर्थ-विशारद ]
विषय-प्रवेश
प्रदर्शित दिशा निर्देशसे कोई भी जैम-साहित्यका
मुमुक्षु पथिक पथ भ्रष्ट नहीं हो सकता है। भारतीय साहित्यकारों और भारतीय बालमयके जैन पुरातत्व साहित्य पाचर्य श्री जिनविजयजी
उपासकोंमें साहित्य-महावि, आचार्यश्वर, ने लिखा है कि--"हरिभरिका प्रादुर्भाव जैन इसिविम्ब सामषि, वारीमगजकेसी, बाकिनीसूतु, हासमें बड़े महत्वका स्थान रखता है। जैनधर्मके
सय श्री हरिमारिका स्थान बहुत ही ऊंचा है। जिसमें मुख्यकर श्वेताम्बर संप्रदायके--उत्तर कालीन इसी प्रकार प्रतिमा, ता, विचारपूर्ण मध्यस्थता, स्वरूपके संबटम कार्यमें उनके जीवन्ने बहुत बड़ा भाग समाध गंभीरता, विचषण वाग्मीता, और मौलिक लिया है। उत्तरकालीन जैन साहित्यके इतिहासमें वे एवं असाधारण साहित्य सृजन-शक्ति प्रादि अनेक प्रथम लेखक माने जानेके योग्य हैं। और जैनसमाज पुणसित सपुष बापकी महानता और दिव्यताको के इतिहासमें नवीन संगठन के एक प्रधान व्यवस्थापक भान भी निर्विवाद रूपसे प्रकट कर रहे हैं। आपके द्वारा कहलाने योग्य हैं। इस प्रकार वे जैनधर्मके पूर्वकालीन विरचित अनुपम साहित्य-राशिसे उपलब्ध सका और उत्तरकालीन इतिहासके मध्यवर्ती सीमास्तम्भ अवलोकन करने से यह स्पष्टरूपेण और सम्म प्रका- समान है।" रेख प्रतीत होगा कि पाप भारतीय साहित्य संस्कृतिके इस प्रकार आचार्य हरिभद्र विद्वत्ताकी रहिसे तो एक पुरीणतम विद्वान् और उज्ज्वल रस्न थे। धुरीणतम हैं ही; पाचार,विचार और सुधारकी दृष्टि से भी
भापकी पीयूषवर्षिणी लेखनीसे निसृत सुमधुर इनका स्थान बहुत ही ऊंचा है। वे अपने प्रकांड पांडिऔर साहित्य-धाराका पास्वादन करने से इस निष्कर्ष त्यसे गर्मित,प्रौद और उच्चकोटिके दार्शनिक एवं तास्विक पर पहुंचा जा सकता है कि जैन-मागम-साहित्य (मूत्र, ग्रंथोंमें जैनेतर ग्रंथकारोंकी एवं उनकी कृतियोंकी आनोविलियों मादि) से इतर उपलब्ध जैन-साहित्यमें चना प्रत्यालोचना करते समय भी उन भारतीय साहिअर्थात् (Classical Jain literature) में यदि त्यकारोंका गौरव पूर्वक और प्रतिष्ठाके साय उदार एवं सद्धसेन दिवाकर सूर्य तो भाचार्य हरिभद्र शार- मधुर शब्दों द्वारा समुल्लेख करते हैं। दार्शनिक संघ
पूर्णिमाके सौम्पन्न है। यदि इसी अलंकारिक पणसे अषित तत्कालीन पापमय वातावरणमें भी माला जैन साहित्याकाशका वर्णन करते चलें तो कलि- इस प्रकारकी उदारता रखना प्राचार्य हरिभद्र सूरिकी काला सर्वाचार्य हेमचन्छ ध्रुव तारा है। इस प्रकार श्रेष्ठताका सुंदर और प्रांजल प्रमाण है। इस रष्टिले व साहित्यामा सूर्य चन्द्र और ध्रुवतारा द्वारा इस कोटिके भारतीय साहित्यक विद्वानोंकी श्रेणीमें