Book Title: Anekant 1940 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 51
________________ सामायिक-विचार . [ले.-स्व० श्रीमद्रानचन्द्र ] .... यात्म-शक्तिका प्रकाश करनेवाला, सम्य- क्या फ़ल होना था ? इससे तो किसने पार पाया ... 'ग्दर्शन का उदय करनेवाला, शुद्ध,समा- होगा, ऐसे विकल्पोंका अविवेक दोष है। धि भावमें प्रवेश कराने वाला, निर्जराका अमूल्य २. यशोवांछादोष-हम स्वयं सामायिक करते लाभ देनेवाला, राग द्वेषसे मध्यस्थ बुद्धि करने । हैं, ऐसा दूसरे मनुष्य जानें तो प्रशंसा करें, ऐसी वाला सामयिक नामका शिक्षाव्रत है। सामायिक इच्छासे सामायिक करना वह यशोवांछादोष है । शब्दकी व्युत्पत्ति सम+आय+ इक इन शब्दोंसे ३. धनवांछादोष-धनकी इच्छासे सामायिक होती है। 'सम' का अर्थ राग-द्वेष रहित मध्यस्थ करना धन लादोष है । परिणाम, 'आय' का अर्थ उस सम्भावनासे उत्पन्न ४. गर्वदोष-मुझे लोग धर्मात्मा कहते हैं हुश्रा ज्ञान, दर्शन, चारित्ररूप मोक्ष मार्गका लाभ, और मैं सामायिक भी वैसे ही करता हूँ ऐसा और 'इक' का अर्थ भाव होता है । अर्थात जिसके अध्यवसाय होना गर्व दोष है। द्वारा मोक्षके मार्गका लाभदायक भाव उत्पन्न हो, ५. भयदोष--मैं श्रावक कुलमें जन्मा हूँ। वह सामायिक है। आर्त और रौद्र इन दो प्रकार मुझे लोग बड़ा मानकर मान देते हैं यदि मैं के ध्यानका त्याग करके, मन, वचन और कायके सामायिक न करूँ तो लोग कहेंगे कि इतनी क्रिया पाप-भावोंको रोक कर विवेकी मनुष्य सामायिक भी नहीं करता, ऐसी निन्दाके भयसे सामायिक करते हैं। करना भय दोष है। मनके पुद्गल तरंगी हैं। सामायिकमें जब६. निदानदोष-सामायिक करके उसके फल विशुद्ध परिणामसे रहना बताया गया है, उम से धन, स्त्री पुत्र आदि मिलनेकी इच्छा करना ममय भी यह मन आकाश पातालके घाट घड़ा निदान दोष है। करता है। इमी तरह भल, विस्मृति, उन्माद ७. संशयदोष--सामायिकका फल होगा अथ. इत्यादिसे वचन और कायमें भी दूषण पानेसे वा नहीं होगा, ऐसा विकल्प करना संशयदोष है। मामायिकमें दोष लगता है। मन, वचन और ८. कषायदोष--क्रोध आदिसे सामायिक कायके मिलकर बत्तीस दोष उत्पन्न होते हैं। दस करने बैठ जाना, अथवा पीछेसे क्रोध, मान, माया मनके, दस वचनके, और बारह कायके इस प्रकार और लोभमें व लगाना वह कषाय दोष है। बत्तीस दोष को जानना आवश्यक है, इनके जानने ९. अविनयदोष-विनय रहित होकर सामासे मन मावधान रहता है। यिक करना अविनय दोष है। मनके दोषकहता हूँ। १०. अबहुमानदोष-भक्तिभाव और उमंग१. अविवेक दोष--सामायिक-स्वरूप नहीं पूर्वक सामायिक न करना वह अबहुमान दोष है । जाननेसे मनमें ऐसा विचार करना कि इससे

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