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वर्ष ३, किरण ४ ]
स्वर्णयुग था और कर्मचन्द बच्छावत जैसे श्रावक उसमें मौजूद थे।"
साहित्य परिचय और समालोचन
यह ग्रन्थ बहुतसे ग्रन्थोंकी सहायता से तैय्यार हुआ है, जिनकी एक विस्तृत सूची साथमें दी गई है । साथ ही श्री मोहनलाल देवीचन्द देशाई एडवोकेट बम्बईकी महत्वपूर्ण प्रस्तावना से भी अलंकृत है, जिसकी पृष्ठ संख्या ७१ है और अन्त में ४८ पृष्ठोंपर ग्रन्थ में आए हुए विशेष नामकी सूचीको भी लिये हुए है, जिन सबसे ग्रन्थकी उपयोगिता बढ़ गई है। कागज़, छपाई, सफ़ाई तथा जिल्द उत्तम है । मूल्य एक रुपया बहुत कम है और वह लेखक महोदयों तथा प्रकाशक जीकी गुरुभक्ति एवं साहित्य प्रीतिको स्पष्ट घोषित करता है, और साथ ही दूसरोंके लिये सेवाभावसे कमी मूल्यका श्रदर्श भी उपस्थित करता
।
(४) विधवा - कर्तव्य - लेखक अगरचंद नाहटा । प्रकाशक, शङ्करदान भेरुंदान नाहटा, नाइटोंकी गवाड़, बीकानेर | साइज़ २०X३०, १६ पेजी | पृष्ठ संख्या, ६२ । मूल्य, दो थाना ।
इसमें सबसे पहले 'विधवा- कुलक' नामका एक दशगाथात्मक प्राकृत प्रकरण भावार्थ तथा विवेचनसहित दिया गया है । यह प्रकरण पाटनके भण्डार से ताड़पत्रपर लिखा हुआ उपलब्ध हुआ है और इसमें वि
वाको शील रक्षा के लिये क्या क्या काम नहीं करने चाहियें, इस विषयका अच्छा उपदेश दिया है । विवेचन कहीं कहीं पर मूलकी स्पिरिटसे बाहर भी निकला हुजान पड़ता है; जैसे केशोंका संस्कार अथवा पुष्पादिसे शृङ्गार न करनेकी बात कही गई थी, तब विवेनमें "विधवाओं को केश रखने भी न चाहियें” यहाँ
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तक कहा गया है और प्रमाण में 'अश्वारूढं पतिं दृष्ट्वा ' नामका एक श्लोक उद्धृत किया गया है, जिसमें केश सहित विधवा स्त्रीको भी देखनेपर सबस्न स्नान करने की बात कही गई है । यह श्लोक कहाँका और किसका है, यह कुछ बतलाया नहीं - ऐसी ही हालत विवेचन में उद्धृत दूसरे पथोंकी भी है। इसमें सकेशा विधवाको देखने पर जिस प्रायत्तकी बात कही गई है वह जैन
नीति के साथ कुछ संगत मालूम नहीं होती । अस्तु, उक्त कुलकके विवेचनादिके अनन्तर पुस्तक में 'विधवाकर्तव्य' नामका एक स्वतंत्र निबन्ध दिया हुआ है, जिसमें लेखक ने अपने विचारानुसार विधवाओंों, घरवा - लों तथा समाजको भी बहुतसी अच्छी शिक्षाएँ दी हैं । पुस्तकमें कहीं कहीं पर छपाईकी कुछ अशुद्धियाँ खटकती हुई हैं।
(५) दादा श्री जिनकुशलसूरि-लेखक, अगरचंद नाहटा और भँवरलाल नाहटा । प्रकाशक, शङ्करदान शुभैराज नाहटा नं० ५-६ आरमेनियन स्ट्रीट, कलकत्ता । साइज़, २०X३०, १६ पेजी । पृष्ठ संख्या सब मिलाकर १३० | मूल्य, चार आना ।
इसमें विक्रमकी १४ वीं शताब्दी के विद्वान् श्राचार्य श्रीजिनकुशलसूरिका जीवन चरित्र ऐतिहासिक दृष्टिले खोज के साथ दिया गया है और उसमें सूरिजीकी अनेक जीवन घटनाओं तथा ग्रन्थ रचनाओं पर अच्छा प्रकाश पड़ता है और कितना ही इतिहास सामने आ जाता है
इस पुस्तककी प्रस्तावना प्रसिद्ध ऐतिहासिक विद्वान् श्री जिनविजयजीकी लिखी हुई है, जिसमें आपने इस जीवन चरित्रको चमत्कारिक घटनाओंसे शून्य शुद्ध इतिहाससिद्ध जीवनवर्णन ( Pure Historical bio